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________________ २२६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आचार्य जिनभद्रगणी के गम्भीर चिन्तन का विशेप अनुदान उनके भाष्य साहित्य मे है । अत उत्तरवर्ती आचार्यों ने भाष्य-अम्बुधि, भाष्य-पीयूप-पाथोधि, भगवान् भाष्यकार आदि सम्वोधन देकर विशिष्ट भाष्यकार के रूप में उनका स्मरण किया है। आगम के विशिष्ट व्याख्याकार आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की अतिम कृति-विशेप आवश्यक भाष्य की स्वोपज्ञ रचना है। पर उसे वे पूर्ण नहीं कर पाए थे। षष्ठ गणधर वाद तक उन्होने लिखा। उसके बाद उनका स्वर्गवास हो गया था। वृत्ति के अवशिष्ट भाग को कोट्याचार्य ने १३७०० श्लोक परिमाण मे पूर्ण किया था। ____ आचारनिष्ठ, गुणनिधान, आचार्य जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का स्वर्गवास विविध शोधो के आधार पर वी० नि० ११२० (वि० स० ६५०) के आसपास प्रमाणित हुआ है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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