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________________ २१० जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आचार्य मल्लवादी के वाक्-कौशल एव साहित्य साधना द्वारा जैन शासन की महती प्रभावना हुई। उनकी विशेपताओ के वर्णन मे ऋपिमडल का एक प्रसिद्ध श्लोक है श्रीनागेन्द्रकुलकमस्तकमणि प्रामाणिकग्रामणी रासीदप्रतिमल्ल एव भुवने श्री मल्लवादी गुरु ॥ प्रोद्यत्प्रातिभवैर्भवोद् भवमुदा श्रीशारदासूनवे । यस्मै त निजहस्तपुस्तक मदाज्जैन त्रिलोक्या अपि ॥ आचार्य हरिभद्र से मल्लवादी पूर्व थे। आचार्य हरिभद्र कृत अनेकान्त जयपताका मे उनकी सन्मति टीका के कई अवतरण दिए गए है। ___ आचार्य मल्लवादी के जीवन की प्रमुख घटना शिलादित्य की सभा मे बौद्धो के साथ शास्त्रार्थ का सम्बन्ध है। यह शास्त्रार्थ प्रभावक चारित्न के अनुसार वी० नि० ८८४ मे हुआ और वल्लभी नगर का ध्वस वी०नि०८४५ मे हुआ था। प्रस्तुत सवत् के अनुसार मल्लवादी का शास्त्रार्थ वल्लभी भग के वाद हुआ था। प्रबन्धकोश मे वल्लभी भग का पूरा प्रसग प्रस्तुत है। उसके अनुसार रक वणिक् से वैमनस्य हो जाने के कारण सामर्थ्यसम्पन्न शिलादित्य को भी महान् सकट का सामना करना पडा । म्लेच्छ जाति का पूर्ण सहयोग रग वणिक् को प्राप्त हुआ। इससे सौराष्ट्र मे अत्यधिक जन-धन की क्षति हुई। विक्रमादित्य भूपालात्पञ्चर्षिन्त्रिक (५७३) वत्सरे। जातोऽय वल्लभीभङ्गो ज्ञानिन प्रथम ययु ॥६६॥ भग्ना पूर्वलभी तेन सजातमसमञ्जसम् । शिलादित्य क्षय नीतो वणिजास्फीतऋद्धिना ॥४॥ प्रबन्धकोश, पृ० २३ सौराष्ट्र की श्रेष्ठ नगरी वल्लभी का वि० स० ५७३ मे घटित रक वणिक् के प्रस्तुत घटना मे भग हुआ। वल्लभी विनाश के साथ ही महाराज शिलादित्य भी कालधर्म को प्राप्त हुए। आचार्य मल्लवादी की काल-नियिकता मे प्रवन्धकोश का यह घटना-प्रसग प्रबल सहायक है। प्रस्तुत घटनाचक्र मे उल्लिखित वि० स० ५७३ के आधार पर महाराज शिलादित्य के समकालीन आचार्य मल्लवादी वी०नि० ११वी सदी (१०४३) के विद्वान् सिद्ध होते है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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