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________________ महाप्राज्ञ जानार्य मल्लवादी २०१ मस्ति सचयनानं नवंप्रथम गिरि पल पर्वत पर उन्होने घोर तप प्रारम्भ पिया। वे निरन्तर पाटम भात ता (दो दिन का उपवाग) करते एव पारणक के दिन रक्ष भोजन लेने थे। चार्नुमानिस पारणक के दिन गप की अति जाग्रहपूर्ण प्रार्थना पर कठिनना में उन्होोधमणो माग आनीत स्निग्ध भोजन ग्रहण किया था। इन सुकर नप से उन्हें दिव्याति प्राप्त हुई। सामनदेवी ने प्रत्यक्ष प्रकट होरर कहा--"वत्म | प्रतिपक्षी विजेता बनो। तकंशास्त्र के अध्ययन गे वाद-विवाद करने की विलक्षण क्षमता का उनमे अभ्युदय हुआ। महाप्रज्ञा के जागरण गे मालवादी हीरकोपग तेजग्गी प्रतीत होने लगे। ___ सभी प्रकार के मामध्यं मे गम्पन्न होकर विद्वान् मल्लवादी ने पिलादित्य की मभा में वौद्धोक गाय शान्तार्थ किया। नय नर महानन्य के आधार पर यह शास्त्रार्य छह मान तक चला। पानिपुण गालवादी को जन्त मे विजय हुई। विजयोल्लार में महागज शिलादिन्य ने उनका महोत्सवपूर्वक नगर में प्रवेश करवाया। मामन देवी ने पुष्पवृष्टि की। कनानिधि, वागेश गुनि मल्लवादी को इसी अवसर पर राजा पिलादित्य की ओर ने यादी की उपाधि प्राप्त हुई थी। उससे पहले उनका नाम मन्त्र था।' जिनानन्द मूरि ने उन्हें मूरि पर पर पहले ही प्रतिष्ठिन कर दिया था। इस समय गच्छ का नम्णं दायित्व उनी कन्धो पर निहित कर वे गण चिन्ता में मुक्त बने। सन्तान की उन्नति होने पर अभिभावक मी यशोमार बनने है। मनवादी गच्छाधार नै एव चारित्न धारिणीपरम पवित्रिणी दुर्लभ देवी का भी सम्मान बढा। आचार्य मालवादी वाद-कुशल ये एव नमधं माहित्यकार भी ये। उन्होंने द्वादशार नयचक्र की रचना की। चक्र के बारह जारी के समान इम ग्रन्थ के बारह अध्याय थे। महाप्राज्ञ भाचार्य मिद्धमेन के सन्मति तर्क की भाति न्याय-जगत् का शिरोमणी, नय और जनेकान्त दर्शनका विवेचन करने वाला सस्कृत भापा का यह अन्य अपने युग में अद्वितीय या तथा जन-मानस के अन तम को हरने वाला था। आचार्य मरलवादी ने प्रतिवाद गजकुभ के भेदने में केमरी तुल्य इम गन्थ का वाचन अपने शिष्य ममुदाय के सम्मुख किया और तर्कशास्त्र का गम्भीर बोध उन्हे प्रदान किया था। साहित्य-जगत् की यह अमूल्य कृति मूलस्प मे आज उपलब्ध नहीं है। सिंहगणी क्षमाश्रमण रचित टीका इम ग्रन्थ पर प्राप्त हो सकी है। सन्मति तर्क टीका एव २४००० श्लोक परिमाण पद्मचरित्न (जैन रामायण) के रचनाकार भी आचार्य मरलवादी ये।। ___आचार्य मत्लवादी के ज्येष्ठ भ्राता मुनि अजितयश ने 'प्रमाण' ग्रन्थ रचा एव यक्ष मुनि ने 'अप्टाग निमित्त बोधिनी' सहिता का निर्माण किया था । दीपालिका के तुत्य सकलार्य प्रकाणिनी यह सहिता थी। वर्तमान मे ये ग्रन्थ अप्राप्य है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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