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________________ मरस्वती-कठाभरण आचार्य सिद्धगेन २०५ प दिया दूसरी ओर उनले उबर मस्तिक अनेक मौलिक तथ्य भी उगरे । ज्ञान मी प्रमाणना और अप्रमाणता मे मोक्षमार्गारयोगिता को न्यान पर मेय म्प का ममपन, प्रत्यक्ष अनुमान और आगम के रूप में प्रभावनयी की परिकल्पना, प्रत्याज और मनुमान मेल्याएं और पगयं की अनुमति और प्रमाण लक्षण मे स्वपरारभापक के माय याध पनि स्वरुप का निश्चयी पारण सिद्धगेन को अपनी मौलिक सूझ ही थी। वे कवि थे। "अनुमिद्धनेनरचय." इस प्रमित उक्ति के अनुसार अन्य समस्त कवि उनके पीछे थे। आचार्य सिद्धीन गावप्रतिष्ठापक, महान् स्तुतिसार, गुगत वाग्मी नवीन युग प्रवना,म्यतत्र विचारगएर साहित्याग के दिवापर थे। उनकी नव-नवोन्मेप प्रदायिनी प्रतिभा जन मानन के लिए यरदान गिद्धहई। उनकी साहित्य-ममदाने ग्यताम्बर-दिगम्बर दोनो परपरा के विद्वान जैनाचाय मा ध्यान अपनी ओर नारप्ट पिया। फलिवान-गवन नाचा मनन्द्र जैसे विनमण्य मानायं का मस्तरा भी उनकी प्रतिमा के सामने उपा गया। उन्होने गहा क्व मिद्धमेगन्नुनयों महार्या अनिधितानापाना पर पा? -निद्धनेन पी महान् गूढापक स्तुतियों के सामने मेरे जैसे व्यक्ति का प्रयाग अशिक्षित न्यनि. का मानापमान है। मादिपुगण फे कर्ता दिगम्बर आचार्य जिनमेन उनकी कवित्व-गनि मे अति प्रभावित हुए और उन्होंने कहा फवय मिद्धमेनाचा-बय तु करयो मता । मणय पद्मगगाद्यान्ननु काचेगि मेचक ।। हम तो गणना मात्र मावि है। यया में कवि आचार्य मिद्धमेन थे। गजवार्तिक के या कनक भट्ट भी उनके महान् प्रशमक रहे है। धर्म-प्रचार पी दिशा में भी आचार्य गिदसेन ने जो किया वह जैन समाज के लिए गौरव का विषय है। एक वार राम गाकर जाचार्य मिद्धमेन ने मुगुकच्छ के महन्नो ग्वालो को प्रतिबुद्ध किया था। उनके राम के आधार पर उन लोगो ने ताल रामक ग्राम वमाया। आचार्य सिद्धमेन ने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव मे अनेक राजाओ को बोध दिया था। मात राजामो को अथवा अट्टारह राजाओ को आचाय सिद्धमेन द्वारा बोध देने की बात अधिक विद्युत है। प्रभावक-चरित्र एव प्रबन्धकोश मे राजाओ की मस्या का कोई उल्लेख नहीं है। __जीवन के सन्ध्या काल में आचार्य मिद्वमेन दक्षिण दिशा के पृथ्वीपुर में थे। आयु का अन्तिम ममय जान उन्होंने अनशन स्वीकार किया। पूर्ण समाधि मे उनका स्वर्गवास हुना। इस ममय सिद्धमेन का गच्छ चित्रकूट मे था। पृथ्वीपुर के सघन
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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