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________________ ३६ प्राज्ञप्रवर आचार्य विमल पउमचरिय के रचनाकार आचार्य विमल 'नाइल - कुल' के वशज थे । वे आचार्य राहु के प्रशिप्य एव आचार्य विजय के शिष्य थे। प्राकृत भाषा पर उनका एकाधिपत्य था । साहित्यिक भाषा मे गुम्फित 'पउमचरिय' (जैन रामायण) अत्युत्तम पद्यमयी रचना आचार्य विमल की कुशल कवित्व शक्ति का परिचय कराती हैं । पउमचरिय ११८ पर्वो मे निवद्ध है। राम का आद्योपान्त जीवन चरित्र इस कृति मे प्रस्तुत है । वाल्मीकि रामायण में रावण, कुम्भकर्ण आदि नायको के व्यक्तित्व को विचित्र ढंग से उभारा गया है। रावण माम-मक्षी था । पन्मासशायी कुम्भकर्ण क्षुधा शान्त करने के लिए हाथी आदि विशालकाय पशुओ को भी निगल जाया करता था । स्वर्णमृग के पीछे राम का पलायन एव उद्दामवी चियो से उद्धत सागर पर वानर सेना द्वारा पुल का निर्माण आदि प्रसग उसमे है | आचार्य विमल ने भिन्न प्रकार से जैन-मस्कृति के माध्यम मे राम के यथार्थ रूप को प्रकट करने का प्रयत्न किया है। पउमचरिय के अनुसार सीता का जन्म भूखनन के समय हल की नोक से नही हुआ था । वह मिथिला की राजकुमारी जनक दुलारी विदेह की प्यारी सुता थी । लका में प्रवेश करते समय अजनि-सुत ने लकासुन्दरी के साथ युद्ध किया था । वह लकासुन्दरी देवी नही मानव पुत्री थी और दुर्गरक्षक विभाग से सम्बन्धित थी । का - विजय के लिए प्रस्थित राम के मार्ग को रोकने के लिए किसी प्रकार की देवशक्ति समुद्र के रूप मे प्रकट नही हुई थी अपितु वह लकेश द्वारा नियुक्त लका सीमा पर स्थित समुद्र नाम का राजा ही था । लक्ष्मण जी की चिकित्सा के लिए पवन पुत्र द्वारा पूरा पर्वत ही कन्धो पर उठा लाने के घटना-प्रसंग पर विमलाचार्य ने कुशल चिकित्सक महिला विशल्या का उल्लेख किया है । जैन परम्परा में पउमचरिय को वही महत्त्व प्राप्त है, जो महत्त्व ब्राह्मण साहित्य में वाल्मीकि रामायण का है । वाल्मीकि रामायण संस्कृत रचना है । पउमचरिय महाराष्ट्री प्राकृत रचना है । इसमे मात्राप्रधान गाथा छन्द का प्रयोग हुआ
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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