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________________ आगमपिटक-आचाय म्वन्दिन और नागार्जुन १८५ स्थविर मिहरथ के उपदेश से प्रभावित हो मोमरथ ने उनके पास श्रमण दीक्षा ग्रहण की। द्वादश वर्षीय दुप्फाल के प्रभाव से अनेक श्रुतधर मुनि वैभारगिरि एव कुमारगिरि पर्वत पर अनशनपूर्वक स्वर्गस्थ हो चुके थे। इस अवसर पर आगम श्रुत की भी महान् क्षति हुई। दुप्काल की पग्मिमाप्ति पर मथुरा में आयोजित श्रमणो के महा सम्मेलन की अध्यक्षता आचार्य स्कन्दिल ने की। प्रस्तुत सम्मेलन में मधुमित्र, गन्धहस्ती आदि १५० भमण उपस्थित थे। मधुमित्र एव स्कन्दिन दोनो आचार्य सिंह के शिष्य थे। नन्दी मूत्र में उन्हें ही ब्रह्मद्वीपक सिंह कहा गया है। आचार्य गन्धल्ती मधुमित्र के शिष्य थे । उनका वैदुप्य उत्कृप्ट या। उमास्वाति के तत्त्वार्य मूत्र पर आठ हजार श्लोक प्रमाण महाभाष्य की रचना आचार्य गन्धहस्ती ने की। गुरुभाई आचार्य मधुमिन्न, महाप्राज्ञ आचार्य गन्धहस्ती एव तत्सम अनेक विद्वान श्रमणो के स्मृत पाठो के आधार पर आगमश्रत का सकलन हुआ । अनुयोगधर आचार्य स्कन्दिल ने उमे प्रणाम किया था। आचार्य स्कन्दिल की प्रेरणा से विद्वान् शिप्य गन्धहस्ती ने ग्यारह अगो का विवरण लिखा। मथुरा निवासी ओसवान वशज श्रावक पोणालक ने गन्धहस्ती विवरण सहित मूतो को ताडपत्र पर लिखनाकर निग्रंन्यो को अर्पित किया था। आचार्य गन्धहस्ती को ब्रह्मदीपक शाखा मे मुकुट मणि के तुल्य माना है। प्रभावक चरित्र के अनुमार आचार्य स्कन्दिल विद्याधरी आम्नाय के आचार्य पादलिप्त रि की परम्परा के थे। जैन शामन स्पी नन्दन वन में कल्पवृक्ष के ममान, ममग्न श्रुतानुयोग को अकुरित करने में महामेघ के समान आचार्य स्कन्दिल थे। 'चिन्तामणिरिवेष्टद' चिन्तामणि की भाति वे इष्ट वस्तु के प्रदाता थे।' वाचनाचार्य हिमवत के ठीक पश्चात्वर्ती भाचार्य नागार्जुन एव पूर्ववर्ती आचार्य स्कन्दिल थे। आचार्य मेरुतुग ने आचार्य स्कन्दिल की काल-निर्णायकता के विपय मे लिखा है-"श्री विक्रमात् ११४ वर्वज्र स्वामी, तदनु २३६ वर्षे स्कन्दिल ।" विक्रम स० ११४ मे वज्र स्वामी का स्वर्गवास हुआ। आचार्य स्कन्दिल का समय आर्य वज्र की स्वर्ग सम्वत् से २३६ वर्प वाद का है । विद्वान मुनि कल्याण विजय जी के अभिमत से वज्र स्वामी एव आचार्य स्कन्दिल दोनो का मध्यवर्ती समय २४२ वर्ष है । वज्र स्वामी के बाद १३ वर्प आर्य रक्षित के, २० वर्ष पुष्पमित्र के, ३ वर्ष वज्रसेन के, ६६ वर्प नागहस्ती के, ५६ वर्ष रेवतिमिन के, ७८ वर्प ब्रह्मदीपक सिंह के है । कुल जोड २४२ वर्ष का है। इस २४२ की सख्या मे वज्र स्वामी के ११४ वर्ष एव अनुयोग प्रवर्तक प्रसिद्ध वाचनाकार आचार्य स्कन्दिल के युगप्रधान-काल के १४ वर्ष मिला देने से उनका (आर्य स्कन्दिल) समय वी० नि० ८२७ से ८४०
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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