SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३. अर्हन्नीति-उन्नायक आचार्य उमास्वाति आचार्य उमास्वाति न्ययोधिका के कोभीपण गोनीय ब्राह्मण परिवार मे जन्म। कुल परम्परा से वे शैव थे। जैन धर्म की उच्च नागरी शाखा में उन्होने दीक्षा ग्रहण की। उनके पिता का नाम स्वाति और माता का नाम उमा था। माता-पिता की स्मृति के रुप मे उनका नाम उमास्वाति हुआ। उमास्वाति अपने युग के महान् विद्वान थे। सस्कृत भाषा पर उनका अतिशय अधिकार था । जैन-दर्शन की विपुल सामग्री को प्राजल सुरभारती मे प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम श्रेय उन्ही को है। 'तत्त्वार्थ मूत्र' आचार्य उमास्वाति की प्रसिद्ध रचना है वजनतत्त्वो का सग्राहक ग्रन्थ है । मोक्ष मार्ग के रूप मे रत्नत्रयी (सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र) का युक्ति पुरस्सर निस्पण, पद्रव्य और नव तत्व की विवेचना, जान-ज्ञेय की समुचित व्यवस्था और भूगोल-खगोल की परिचर्या से इस ग्रन्थ की जैन समाज मे महती उपयोगिता सिद्ध हुई है। ___ आचार्य उमास्वाति वैजोड मग्राहक थे। उन्होने जैन दर्शन से सम्बन्धित कोई भी विपय नही छोडा जिसका सकेत इस कृति मे न हुआ हो। उनकी इस सग्राहक वृत्ति से प्रभावित होकर आचार्य हेमचन्द्र ने कहा उपउमास्वाति सगहीतार ॥ -जैन तत्त्व के सग्राहक आचार्यों मे उमास्वाति प्रथम हैं। उमास्वाति समर्थ साहित्यकार थे। उन्होने अनेक ग्रन्थ रचे। विशुद्ध अध्यात्म की भूमिका पर प्रतिष्ठित उनका 'प्रशमरति प्रकरण' समता रस को प्रवाहित करने वाला निर्झर है। ___'जम्बूद्वीप समास प्रकरण', 'श्रावक-प्रज्ञप्ति' 'प्रजा प्रकरण' और 'क्षेत्र विचार' आदि भी उन्ही की रचनाए है। जनश्रुति के अनुसार उमास्वाति चामत्कारिक भी थे। उन्होने एक वारप्रस्तरनिर्मित सरस्वती की प्रतिमा के मुख से शब्दोच्चारण करवा दिया था। ___ आचार्य उमास्वाति का व्यक्तित्व वास्तव में ऐसे चामत्कारिक प्रयोगो से नही, उनकी अभूतपूर्व सग्राहक प्रतिभा के आधार पर चमका है ।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy