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________________ महाविद्या-सिद्ध आचार्य खपुट १२७ अन्यथा उनका शिरच्छेद होगा। राजा की इस घोपणा से जैन सघ मे चिन्ता हुई। यह जीवन-सकट का प्रश्न नही, धर्म-सकट का प्रश्न था। देहत्यागान्न नो दुख शासनस्याप्रभावना देहत्याग से उन्हे दुख नही था पर शासन की अप्रभावना पीडित कर रही थी। अतिशय विद्यासम्पन्न आर्य खपुट और उनका शिष्य मडल ही इस सकट से जैन सघ को बचा सकता है। जैन सघ ने भृगुपुर मे दो गीतार्थ स्थविर मुनियो को आचार्य खपुट के पास प्रेपित किया। आर्य खपुट ने समग्न स्थिति को समझा एव प्रतिकारार्थ अपने विद्वान शिष्य महेन्द्र को वहा भेजा। राजा दाहड की सभा मे ब्राह्मण पण्डितो के सम्मुख मुनि महेन्द्र द्वारा लाल एव धवल कणेर के माध्यम से विद्या-प्रयोग का प्रदर्शन जैन संघ के हित में हुआ। राजा दाहड झुक गया एव श्रमण वर्ग के लिए प्रदत्त कठोर मादेश हेतु मुनि महेन्द्र से क्षमा याचना की। वार-वार राजा दाहड यही कहता रहा क्षमस्वक व्यलीक मे (२८) (प्रभा० चरित, पृ० ३५) ___ इस घटना-प्रसग से जैन दर्शन की महती प्रभावना हुई। राजा दाहड जैन धर्म का भक्त वन गया। ___कुछ समय के बाद शिष्य भुवन ने भी अपने गुरु के पास आकर स्वकृत अविनय की क्षमा-याचना की और श्रमण सघ मे मिल गया। गुरु ने भी उसे योग्य समझकर बहुमान दिया। गुणवान्, विनयवान्, चरित्नवान् एव श्रुतवान् बनकर भुवन ने सघ को विश्वस्त किया । आचार्य सपुट ने शिष्य भुवन को सूरि पद पर स्थापित कर अनशनपूर्वक स्वर्ग प्राप्त किया। आर्य कालक की भाति अनेक चामत्कारिक घटनाए खपुटाचार्य के जीवनवृत्त के साथ जुडी हुई है। उनके चामत्कारिक प्रसगो के आधार पर प्रभावक चरित्र आदि साहित्य मे वे सर्वत्र विद्यासिद्ध आचार्य के रूप मे विशेषित हैं। टीकाकार मलयगिरि ने उन्हे विद्या चक्रवर्ती का सम्बोधन देकर अतिशय विद्याओ पर उनका प्रवल आधिपत्य सूचित किया है। श्रीवीरमुक्तित शतचतुष्टये चतुरशीतिसयुक्ते । वर्षाणा समजायत श्रीमानाचार्य खपुटगुरु ॥७९॥ (प्रभा० चरित, पृ० ४३) प्रभावक चरित के उक्त उल्लेखानुसार आचार्य खपुट का समय वी०नि० ४८४ (वि० स० १४) है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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