SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३-१४. स्वाध्याय-प्रिय आचार्य सुस्थित सुप्रतिबुद्ध व्याघ्रापत्य गोत्रीय आचार्य सुस्थित काकदी के राजकुमार थे। उनका जन्म वी०नि० २४३ (वि०पू० २२७) में हुआ। आर्य सुप्रतिवुद्ध उनके सहोदर एव" गुरु भाई थे। आचार्य सुस्थित ३१ वर्ष गृह-पर्याय में रहे। आर्य सुहस्ती के पास उन्होने वी०नि० २७४ (वि० पू० १९६) मे दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेने के बाद शास्त्रीय ज्ञान में उनकी गति उत्तरोत्तर विस्तार पाती रही। — आचार्य सुहस्ती के बाद बी०नि० २६१ (वि० पू० १७६) मे आयं सुस्थित ने आचार्य पद का दायित्व सभाला। उन समय उनकी अवस्था ४८ वर्ष की थी। 'आचार्य सुप्रतिवुद्ध वाचनाचार्य पद पर नियुक्त हुए। मार्य सुस्थित एव सुप्रतिबुद्ध के पाच शिप्य थे-(१) इन्द्रदिन्न, (२) प्रियग्रन्थ, (३) विद्याधर गोपाल, (४) ऋपिदत्त, (५) अर्हद्दत्त ।' भुवनेश्वर के निकट कुमारगिरि पर्वत पर दोनो महोदर सुस्थित एव मुप्रतिवुद्ध कठोर तप साधना मे लगे । यह कुमागिरि पर्वत वर्तमान मे खण्डगिरि उदय-- गिरि पर्वत ही है। जहा की अनेक जैन गुफाए आज भी कलिंग नरेश खारवेल "महामेघवाहन के धार्मिक जीवन की परिचायिकाए है। कलिंगपति महामेघवाहन खारवेल के नेतृत्व मे इसी पर्वत पर महत्त्वपूर्ण आगम वाचना का कार्य और अनेक श्रमणो का सम्मेलन हुआ था। उसमे दोनो 'सहोदर आर्य सुस्थित और सुप्रतिवुद्ध उपस्थित थे। कलिंगाधिप भिक्षुराज ने इन दोनो का विशेप सम्मान किया था। काकदी नगरी में दोनो साधको ने जिनेश्वरदेव का कोटि वार जप किया। इस उच्च॑तम साधना से सघ को अत्यधिक प्रमन्नता हुई। उक्त साधना के परिणामस्वरूप आचार्य सुस्थित के गच्छ का नाम कोटिक गच्छ हुमा।' कोटिक गण की चार शाखाए थी-(१) उच्चनागरी, (२) विद्याधरी, (३) वाजी, (४) मध्यमा। कोटिक गण के चार कुल थे-(१)वभलिज्ज,(२)वत्थलिज्ज,(३)वाणिय,.
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy