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________________ २८ और ८ वर्ष केवली रूप में धर्म का प्रचार कर शत वर्ष की आयु में राजगृह नगर से मुक्त हुए । ' माण्डव्य - (छठवें गणधर ) जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २ यह मौर्य सन्निवेश के वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धनदेव और माता का नाम विजया था । इन्होंने भी इन्द्रभूति की तरह अपने ३५० छात्रों के साथ तिरेपन वर्ष को अवस्था में महावीर के समक्ष मुनि दीक्षा अंगीकार की । चौदह वर्ष तक आत्मसाधना के मार्ग में रहकर ६७ वर्ष की अवस्था में केवलज्ञान प्राप्त किया । लगभग १६ वर्ष केवली जीवन में रहकर भगवान महावीर के जीवन समय में ही मुक्त हुए । मौर्य पुत्र - ( सातवे गणधर ) सातवे गणधर मीयं पुत्र हैं, जो मौर्य सन्निवेश के निवासी थे। इनका गोत्र काश्यप था। इनके पिता का नाम मोर्य और माता का नाम विजया देवी था। देव और देवलोक सम्बन्धी शंका की निवृत्ति के परिणामस्वरूप लगभग पैसठ वर्ष की अवस्था में अपने ३५० छात्रों के साथ जिनेश्वरी दीक्षा अंगीकार की । कुछ वर्ष उद्मस्थ अवस्था में बिताकर ७६ वर्ष की वय में केवल ज्ञान प्राप्त किया । १६ वर्ष केवली पर्याय में रहकर महावीर के जीवन काल में ही मुक्त हुए । कम्पित- ( श्रठवें गणधर ) आठवें गणधर का नाम अकम्पित था । यह मिथिला नगर के निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम देव और माता का नाम जयन्ती था । इन्हें नरक ओर नारकीय जीवों के सम्बन्ध में सन्देह था । अपने सराय की निवृत्ति के कारण ४८ वर्ष की अवस्था में अपने तीन सौ शिष्यों के साथ महावीर के चरणों में दैगम्बरी दीक्षा ग्रहण की । तपश्चरणादि द्वारा छद्मस्थ जीवन बिताकर, केवलज्ञान प्राप्त कर, २१ वर्ष पर्यन्त केवली पर्याय में रहकर राजगृह से मुक्ति प्राप्त की। प्रचलभ्राता - (नौव गणधर ) भगवान महावीर के नौवें गणधर का नाम अचल भ्राता था । जो हारीय गोत्रीय ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम वसु और माता का नाम नन्दादेवी था । पुण्य-पाप-सम्बन्धी अपनी जिज्ञासा की निवृत्ति के बाद उन्होंने अपने तीन सौ शिष्यों के साथ छयालीस वर्ष की अवस्था में भगवान महावीर के सन्मुख दिगम्बर दीक्षा ली और कठोर साधना करते हुए उन्होंने केवल बांधि प्राप्त की। लगभग बहत्तर वर्ष की अवस्था में विपुलाचल से निर्वाण प्राप्त किया । मेतार्य- - ( दसवें गणधर ) दशवे गणधर का नाम मतार्य है। ये वन्स देशान्तर्गत तुगिक सन्निवेश के निवासी थे। इनका गोत्र कौडिन्य था। इनके पिता का नाम दत्त और माता का नाम वरुणा था । पुनर्जन्म के सम्बन्ध में इनके मन में सशय था । किन्तु भगवान महावीर के उपदेश में उसका समाधान हो गया। निश्शंक होने पर इन्होंने छत्तीस वर्ष की अवस्था में भगवान महावीर के समक्ष अपने तीन सौ शिष्यों के साथ द्विविध परिग्रह का परित्याग कर दिगम्बर दीक्षा ले ली । तपश्चरण द्वारा कठोर साधना करते हुए घाति चतुष्टय का विनाश कर केवलज्ञान प्राप्त किया और लगभग बासठ वर्ष की अवस्था में राजगृह से मुक्ति प्राप्त की । प्रभास - ( ग्यारहवें गणधर ) ग्यारहवे गणधर का नाम ' प्रभास' था । ये राजगृह के निवासी थे। इनका गोत्र कौडिन्य था । इनके १. मोक्ष ते महावीरे सुधर्मागणभृद्वरः । छथी द्वादशाब्दानि तस्थौ तीर्थप्रवर्तयन् ॥ ततश्च द्वानवत्यब्दी प्रान्ते सम्प्राप्तकेवलः । अष्टाब्दी विजहारोव भव्यसत्वान् प्रबोधयत् ॥ प्राप्ते निर्वाण समये पूर्ण वर्ष शतायुषा । सुधर्म स्वामिना स्थापि जम्बूस्वामी गणाधिपः || - परिशिष्ट पर्व ४-५७, ५८, ५६
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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