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________________ ५०३ १५वीं १६वीं १७वी और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि उदार था । कायस्थ जाति में और भी अनेक विद्वान हुए हैं जिन्होंने जैनधर्म को अपनाकर अपना कल्याण किया है । पोर कितने ही अच्छे कवि हुए हैं जिनकी सुन्दर एवं गंभीर रचनाओं से साहित्य विभूषित है। कितने ही लेखक हुए हैं । कवि ने यह ग्रंथ अमरसिंह के पुत्र लक्ष्मण के नामांकित किया है क्योंकि वह इन्हीं की सत्प्रेरणादि को पाकर ग्रन्थकार उसके बनाने में समर्थ हुआ है। प्रशस्ति में कहीं पर भी रचनाकाल दिया हुआ नहीं है, जिससे कवि का समय निश्चित किया जाता। हां, प्रशस्ति में कवि ने अपने से पूर्ववर्ती कवियों का स्मरण जरूर किया गया है, जिनमें समन्तभद्र, भट्ट अकलंक, पूज्यपाद (देवनन्दी) जिनसेन, रविषेण, गुणभद्र वट्ट केर, शिवकोटि, कुन्दकुन्दाचार्य, उमास्वाति, सोमदेव, वीरनन्दी धनंजय, असग, हरिचन्द्र जयसेन और अमितगति (द्वितीय)। इन नामों में हरिचन्द्र और जयसेन ११वीं और १३वीं शताब्दी के विद्वान हैं। किन्तु इस प्रशस्ति में मलयकीर्ति और कमलकीर्ति नाम के विद्वान भट्टारक का भी उल्लेख है, जिनका समय विक्रम की १५वीं शताब्दी है । अतः यह रचना भी १५वीं शताब्दी की जान पड़ती है। कवि कोटीश्वर इनके पिता तम्मणसेट्टि तुलुदेशान्तर्गत बइदूर राज्य के सेनापति थे । इनकी माता का नाम रामक, बड़े भाई का नाम सोमेश और छोटे भाई का नाम दुर्ग था। संगीतपुर के नगर सेठ 'कामसेणही' इनका जामाता था। श्रवण बेलगुल के पण्डित योगी के शिष्य प्रभाचन्द्र इनके गुरु थे। संगीतपुर के नेमिजिनेन्द्र इनके इप्टदेव थे और संगीतपर के राजा संगम इनके आश्रय दाता थे। इन्ही के आदेश से कवि कोटीश्वर ने जीवन्धर षट्पदी, नाम के ग्रन्थ की रचना की थी। बिलगि ताल्लुके के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि श्रुतकीति संगम के गुरु थे और इन्ही व तिकीति की शिष्य परम्परा में 'कर्नाटक शब्दानुशासन' के कर्ता भट्टाकलंक (१६०४) पांचवें थे । कोटीश्वर ने जीबन्धर षट् पदी में अपने पूर्ववर्ती गुरुओं की स्तुति विजयकीति के शिष्य श्रुतकीति पर्यन्त की है । इससे कोटीश्वर का समय ई० सन् १५०१ के लगभग जान पड़ता है। जीवंधरषट् पदी की एक ही अपूर्ण प्रति प्राप्त हुई है, जिसमें अध्याय के और दशवें अध्याय ११६ पद्य दिये दए हैं। इसके मंगलाचरण में कवि ने कोण्डकुन्द, समन्तभद्र, पंडित मुनि, धर्मभूषण, भट्टाकलंक, देवकीति, मुनिभद्र, विजय कीर्ति, ललितकीति और श्रुतकीर्ति आदि गुरुनों का स्तवन किया है। ___ और पूर्ववर्ती कवियों में जन्न, नेमिचन्द्र, होन्न, हंपरस, अग्गल, रन्न, गुणवर्म औरनागवर्म का स्मरण किया है। कवि का समय ईसा की १५वीं शताब्दी का उपान्त्य और विक्रम सं० १५७८, सोलहवीं का उत्तरार्द्ध है। पंडित खेता पंडित खेता ने अपना कोई परिचय अंकित नहीं किया । मौर न अपनी गुरु परम्परा का ही उल्लेख किया है। इनकी एक मात्र कृति 'सम्यक्त्व कौमुदी' है, जो तीन हजार श्लोकों के प्रमाण को लिए हुए है। इस ग्रन्थ की यह प्रति सं० १६६६ की माघ वदि ५ गुरुवार के दिन जहांगीर बादशाह के राज्य में श्रीपथ (वयाना) में लिखी गयी वह प्रति सं० १६८९ ज्येष्ठ कृष्णा १३ को शुभ दिन में शाहजहां के राज्य में काष्ठासंघ माथुर गच्छ पुष्करगण समाचार्यान्वय के भट्टारक गुणचन्द्र, सकलचन्द्र, महेन्द्रसेन के शिष्य पं० भगवती दास को श्वेताम्बर रुपचन्द्र के पास से प्राप्त हुई थी, जो अब नयामंदिर दिल्ली के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है। रचना सरल है, उसकी भाषा आदि से १५वीं-१६वीं शताब्दी की कृति जान पड़ती । ग्रंथ अप्रकाशित है, प्रकाशन की वाट जोहरहा है।
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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