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________________ १५वीं १६वीं १७वीं और १८वीं शताब्दी के आचार्य, भट्टारक और कवि ४६३ रास ६. शान्तिनाथ फागु ७. धर्म वाणी ८. पूजा गीत ६. णमोकार गीतडी १०. जन्माभिषेक धूल ११. भवभ्रमण गीत १२. चउवोसतीर्थकर फागु १३. सारशिखामण रास १४. चारित्रगीत १५. इंद्रिय सवर गीत आदि। रचनाए सामने न होने से इनका परिचय नहीं दिया जा रहा । ग्रन्थों के नाम सूचियों पर से दिये गये हैं। अवकाश मिलने पर फिर कभी इनका परिचय लिखा जायगा। __मूलाचार प्रदीप में भी रचना काल नहीं है किन्तु , बडाली के चातुर्मास में लिखी गई एक गुजराती कविता में मलाचार प्रदीप के रचे जाने का उल्लेख किया गया है । इसकी रचना उन्होंने लघुभ्राता जिनदास के अनुग्रह से की गई थी, उसका समय सं० १४८१ दिया गया है। "तिहि अवसरे गुरु प्राविया वडाली नगर मझार रे। चातुर्मास तिहाकरो शोमनो, श्रावक कीधा हर्ष अपार रे। प्रमीझरे पधरावियां वधाई पावे नरनार रे । सकल संघ मिलके दया कीन्या जय-जयकार रे। चौदह सौ इक्यासी भला , श्रावणमास लसंत रे। पूणिमा दिवस पूरण कर्मा , मूलाचार महंत रे। भ्राताना अनुग्रह थकी, कीधा ग्रन्थ महानरे।" भ० सकलकीति ने १५ वीं शताब्दी में राजस्थान और गुजरात में विहार कर जनता में धार्मिक कचि जगत की उन्हें जैनधर्म का परिज्ञान कराया, और प्रवचनों द्वारा उनके अज्ञान मल को धोया। उन्ही का अनुसरण उनके लघ भ्राता ब्रह्म जिनदास ने किया। उसके बाद उनकी शिष्य परम्परा में वही क्रम चलता रहा। संवत १४८२ में इंगर पुर में दीक्षा महोत्सव सम्पन्न किया' । संवत् १४९२ व गलिया कोट में भटटारक गद्दी की स्थापना की और अपने को बलात्कारगण और सरस्वती गच्छ का भट्टारक घोपित किया। समय विचार पटटावली में भटटारक सकलकीति का जीवन ५६ वर्ष का बतलाया है । संवत १४६९ में महसाना में दिवंगत हए। वहां उनकी निषधि भी बनी हुई है। सकलकीति का जन्म सं० १४४३ में हमा। १४ वर्ष की प्रवस्था में उनका विवाह हुआ।और १२ वर्ष वे गृहस्थी में रहे । २६ वर्ष की अवस्था में सं०१४६६ में घर में नैणवा काभ. पद्मनन्दी से दीक्षा लेकर आठ वर्ष तक उनके पास रहकर, न्याय, व्याकरण. सिद्धान्त, काव्य छन्द अलकार ग्रादि का अध्ययन कर वैदुष्य प्राप्त किया। सकलकीति रास में भूल से 'चउद उनहत्तर' के स्थान पर 'चउद सठि पदा गया या लिखा गया, जो गलत है, उससे उनके समय सम्बन्ध में विवाद उठ खड़ा हुआ। वे सं० १४७७ में चौतीस की अवस्था में बागड़ गुजरात के ग्राम खोडणे में पाये, और वहाँ शाह पोचा के गृह में आहार लिया। पश्चात वर्ष पर्यन्त विविध स्थानों में भ्रमण किया । अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ बनाये । मन्दिर-मति निर्वाण एवं प्रतिष्ठादि कार्य सम्पन्न किये और अन्त में ५६ वर्ष की अवस्था में सं० १४६९ में स्वर्गवासीहए। डा. ज्योति प्रसाद जी सकलकीति का जीवन ८१ वर्ष का स्वीकार करते हैं जो ठीक नहीं जान पडता डा० विद्याधर जोहरापुर कर ने भट्टारक सम्प्रदाय में सकलकीति का समय सं० १४५० से १५१० तक का दिया है जिसका उन्होंने कोई आधार नहीं बतलाया । उक्त दोनों विद्वानों द्वारा बतलाया समय पट्टावली के समय से मेल नहीं खाता । आशा है दोनों विद्वान अपने बतलाये समय पर पुनः विचार करेंगे। १. चउदह अव्यासीय संवति कुल दीपक नरपाल संघपति । डूंगरपुर दीक्षा महोच्छव तीणि कियाए। श्री सकलकीर्ति सह गुरु सुकरि, दीषी दीक्षा आणंदभरि-जय जयकार सयल चराचरु ए। -सकलकीर्ति रास
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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