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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ शास्त्रों में निपुण थे। भव्यरूपी कमलो को विकसित करने वाले सर्य थे। वे संघ सहित विहार करते हए सकीट नगर में पाए, जो एटा जिले में है इन्होंने सकीटनगर (एटा जिला) वासी लम्बकचुक (लमेचू) आम्नाय के सकतू साह के पुत्र प. सोनिक' को प्रार्थना पर तत्त्वार्थसूत्र का 'तत्त्वाथ रत्न प्रभाकर', नाम को टोका वि०सं० १४८६ म ब्रह्मचारी जैताख्य के प्रबोधार्थ लिखी थी । इससे इस प्रमाचन्द्र का समय विक्रम का १५वी शताब्दो सुनिशचत है। काल्ह पुत्र हावा साधू की प्रार्थना से उक्त टिप्पण बनाया गया और उन्ही के नामाकित किया है। जसा कि उसके निम्न पूष्पिका वाक्य में प्रकट है : इति श्री भट्टारक धर्मचन्द्र शिप्य गणिप्रभाचन्द्र विरचिते तत्त्वार्थ टिप्पणके ब्रह्मचारि जैता साधु हावादेव नामाकिते दशमा ऽध्यायः समाप्तः । भ० शुभकीति शभकीति नाम के अनेक विद्वान हो गए हैं। उनमें एक शूभकीति वादीन्द्र विशाल कोति के पट्टधर थे। इनकी बुद्धि पंचाचार क पालन में पवित्र थी। एकान्तर आदि उग्रतपा के करने वाले तथा सन्मार्ग के विधि विधान में ब्रह्मा के तुल्य थे, मुनियों में श्रष्ठ पार शुभ प्रदाता थ'। इनका समय विक्रम की १३वी शताब्दा है। दूसर शभकीति कुन्दकन्दान्वयी प्रभावशाली रामचन्द्र के शिष्य थे । ओर तीसरे गुभकोति प्रस्तुत शान्तिनाथ चारत के कर्ता हैं । जो देवकीति के समकालीन थे, उन्होंने प्रभाचन्द्र के प्रसाद से शान्तिनाथ चरित की रचना का थी कवि ने अपनी गुरुपरम्पग ओर जीवन-घटना के सम्बन्ध में कोई प्रकाश नही डाला। ग्रन्थ का पुष्पिका वाक्य में उहय भासा चक्का वट्टि मुकित्तिदेव विरइए' पद दिया है, जिससे वे अपभ्रश आर सस्कृत भापा में निष्णात विद्वान थे। कविने ग्रन्थ के अन्त म देवकीति का उल्लेख किया हैं। एक देवकीति काप्ठासघ माथुरान्वय के विद्वान थे उनके द्वारा सं०१४६४ आपाढ वदि २ के दिन प्रतिष्ठित एक धातु मति आगरा के कचौडा बाजार के मन्दिर में विराज मान है । हो सकता है कि प्रस्तुत शुभकीति देवकीति के सम कालीन हों, या किसी अन्य देव कीति के समकालान १. प्राप्त पुर सकीटाख्य समानीता जिनालय । लम्बक चुक आम्नाये सकतू माधुनन्दनः ॥११ पडिता सानिका विद्वान जिनपादाब्जपट्पदः । सम्यग्दृष्टि गुणावासो बुध-शोपं शिरोमणि ॥१२ (आदि प्रशस्ति) अस्मिन्सवत्सर विक्रमादित्य नपते. गते । चतुर्दशतेऽनोते नवासीत्यब्द सयुते ॥ १३ भाद्रपद शुक्ल पंचमी वामर शुभे । वारनं वैनियोग विशाखा ऋक्षके वरे ॥१४ तत्त्वार्थ टिप्ण भद्र प्रभाचन्द्र तपस्विना । कृत मिद प्रबांधाय नाख्य ब्रह्मचारिणे ॥१५ (अन्तिम प्र०) ... ... तपो महात्मा शुभकीत्ति देवः । एफन्त गद्यग्रतमो विधानाद्धाते सन्मार्गविध विधाने। -पट्टावली शुभचन्द्र: तत्पट्ट जनि विख्यातः पवाचारपवित्रधीः । शुभकीर्ति मुनि श्रेष्ठ शुभकीति शुभप्रदः ।। -मुदर्शन चरित्र ४. श्री कुदकुदम्य बभूबवशे श्री रामचन्द्र प्रथत प्रभावः शिष्यस्तदीय: शुभकीर्तिनामा तपोंगना बक्ष सि हारभूतः ।। ७ प्रद्योतने सम्प्रति तम्य पट्ट विद्या प्रभावेण विशालकीतिः । शिष्यरनेकरुपसेव्यमान एकान्तवादादि विनाश बज्रय ॥ -धर्मशर्माभ्युदय लिपि प्र० ५.स. १४६४ आषाढ वदि २ काष्ठासंघे माथरान्वये श्री देवकीर्ति प्रतिष्ठिता। ३
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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