SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ इसके अतिरिक्त करकण्डुचरिउ, सम्यक्त्व कौमुदी, वृत्तसार अणथमोकथा, पुण्णासबकथा, सिद्धांतार्थसार, दशलक्षण जयमाला और षोडशकारण जयमाला। इन आठ ग्रन्थों में से पुण्यास्रव-कथा कोष को छोड़कर शेष ग्रन्थ कहां और कब रचे गए, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। रइधु ने प्रायः अधिकांश ग्रन्थों को रचना ग्वालियर में रहकर तोमर वंश के शासक डूंगरसिंह और कीतिसिंह के राज्य समय में की है जिनका राज्य काल संवत् १४८१ से सं० १५३६ तक रहा है। अतएव कवि का रचनाकाल स० १४४० से १५३० के मध्यवर्ती समय माना जा सकता है। ___ मैं पहले यह बतला आया हूं कि कविवर रइधू प्रतिष्ठाचार्य थे। उन्होंने कई प्रतिष्ठाएँ कराई थीं। उनके द्वारा प्रतिष्ठित संवत् १४६७ की प्रादिनाथ की मूर्ति का लेख भी दिया था । यह प्रतिष्ठा उन्होंने गोपाचल दुर्ग में कराई थी इसके सिवाय, संवत् १५१० और १५२५ की प्रतिष्ठित मूर्तियों के लेख भी उपलब्ध है, जिनकी प्रतिष्ठा वहां इनके द्वारा सम्पन्न हुई है' संवत् १५२५ में सम्पन्न होने वाली प्रतिष्ठाएँ रइधू ने ग्वालियर के शासक कीतिसिंह या करणसिंह के राज्य में कराई है, जिनका राज्य संवत् १५३६ तक रहा है। ___ कुरावली (मैनपुरी) के मूर्तिलेख जिनका संकलन वाबू कामताप्रसाद जी ने किया था। ये भी रइधू को प्रतिष्ठाचार्य घोषित करते हैं। तदनुसार रइधू ने सं० १५०६ जेठ सुदि शुक्रवार के दिन चंदवाड़ में चौहान वंशी राजा रामचन्द्र के पुत्र प्रतापसिंह के राज्यकाल में अग्रवाल वंशी साह गजाधर और भोलाने भगवान शांतिनाथ की मति की प्रतिष्ठा कराई थी। अन्वेपण करने पर अन्य मति लेख भी प्राप्त हो सकते हैं। इन मतिलेखों से कवि रइध के जीवनकाल पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। वे सं० १४४० मे मंवत १५२५ तक तो जीवित रहे ही हैं, कितु बाद में और कितने वर्ष तक जीवित रहे, यह निश्चय करना अभी कठिन है अन्य साधन-सामग्री के मिलने पर उस पर प्रौर भी विचार किया जायगा। इस तरह कवि विक्रम की १५वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के विद्वान थे। १. देवो, अनेकान्त वर्ष १०, किरण १०, तथा ग्वालियर गजिटियर जि० १ २. देखो, मेरी नोट बुक सं० १५२५ में प्रतिष्ठित मूर्तिलेख, ग्वालियर ३. सं० १५०६ जेठ मुदी "शुक्रे श्रीचन्द्रपाट दुर्गे पुरे चौहान बगे राजाधिराज श्रीरामचन्द्रदेव युवराज श्री प्रतापचन्द्रदेव राज्य वर्तमाने श्री काप्ठा संवे माथुगन्वये पुष्करगरणे आचार्य श्री हेमकीतिदेव तत्प? भ. श्री कमलकीर्तिदेव । पं. आचार्य रेषु नामधेय तदम्नाये प्राग्रोतकान्वये वामिल गोत्रे साहु त्योधर भार्या द्वौ पुत्रौ द्वौ सा महाराज नामानी त्योंध. भार्या श्रीपा तयोः पूत्राश्चत्वारः संघाधिपति गजाधर मोल्हण जनक गतू नामान: संधाधिपति गजे भार्या द्वे राय श्री गांगो नाम्नि संघाधिपति मोल्हण भा० सोमश्री पुत्र तोहक, मघाधिपति जलकू. भार्या महाश्री तयोः पुत्री कुलचन्द्र मेघचन्दौ सघपति रातू भा० अभया श्री माधु त्योधर पुत्र महागज भार्या मदन श्री पुत्रौ द्वौ माणिक'''भार्या शिवदे... सघपति जयपाल भार्या मुगापते संघाधिपति गजाधर संघा० भोला प्रमुख शान्तिनाथ बिम्बं प्रतिष्ठापितं प्रण मितं च । देखो, (प्राचीन जैन लेख मंग्रह, सम्पादक बा० कामताप्रसाद)। ४. 'अग्रवाल यह शब्द एक क्षत्रिय जाति का सूचक है। जिसका विकास अग्रोहा या अग्रोदक जनपद से हुआ है। यह स्थान पंजाब राज्य में हिमारनगर से १३ मील दूर दिल्ली मिग्मा सड़क पर स्थित है। इस समय यह उजड़ा हुआ छोटा सा गाव है । यह प्राचीन काल में विशाल एवं वैभव सम्पन्न ऐतिहासिक नगर था। इसका प्रमाण वे भग्नावशेष हैं जो इसके स्थान के निकट प्रायः सात मौ एकड़ भूमि में फैले हुए हैं। यहां एक टीला ६० फुट ऊंचा था, जिसकी खुदाई मन् १९३६ या ४० में हुई थी। उसमे प्राचीन नगर के अवशेष, और प्राचीन सिक्को आदि का ढेर प्राप्त हुआ था। २६ फुट से नीचे प्राचीन पाहन मुद्रा का नमूना, चार यूनानी सिक्के और ५१ चौखटे तांबे के सिक्को में सामने की मोर वृषभ' और पीछे की ओर सिंह या चैत्यवृक्ष की मूर्ति है। सिरको के पीछे ब्राह्मी अक्षरे में-'अगोद के अगच जनपदस 'शिलालेख भी अंकित है' जिसका अर्थ 'अग्नोदक में अगच जनपद का सिक्का' होता है । अग्रोहे का नाम अग्रोदक भी रहा है । उक्त सिक्कों पर अंकित वृषभ, सिंह या चैत्य वृक्ष की मूर्ति जैन मान्यता की ओर संकेत करती हैं। (देखो, एपिग्राफिका इंडिका जि०२ पृ० २४४ । इंडियन एण्टीक्वेरी भाग १५ के प० ३४३ पर अग्रोतक वैश्यों
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy