SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केवलज्ञान कम स्वतंत्रता की प्रतीक है। इसीलिये प्राचार्य समन्तभद्र ने उसे परम ब्रह्म कहा है।। केवलज्ञान होने पर इन्द्रादिकदेव उनके केवलज्ञान का कल्याणक मनाने के लिये आये और उन्होने भगवान महावीर के केवलज्ञान कल्याणक की पूजा को । परन्तु उस समय उनकी दिव्यध्वनि नही खिरो-उनका धर्मोपदेश नहीं हुआ। धर्मोपदेश न होने का कारण-क्षायोपमिक ज्ञान के नष्ट हो जाने पर अनन्त रूप कवलज्ञान के उत्पन्न होने पर नी प्रकार के पदार्था से गभित दिव्यध्वनि सूत्रार्थ का प्रतिपादन करती है। किन्तु भगवान महावीर केवलज्ञान होने के पश्चात् ६६ दिन तक गणधर क अभाव में धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन नही हया। उनकी वाणी नही खिरी। " सौधर्म इन्द्र ने गणधर को तत्काल उपस्थित क्यो नही किया? टम प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि काल लधि के बिना सौधर्म इन्द्र गणधर को कैसे उपस्थित कर मकता था। उस समय उममे गणधर को उपस्थित करने की सामर्थ नही थी, क्याकि जिसने जिनके पादमूल में महाव्रत स्वीकार किया है ऐसे व्यक्ति को छोडकर अन्य के निमित्त से दिव्यध्वनि नही खिरती। ऐमा उसका स्वभाव है । सौधर्म इन्द्र को जब यह ज्ञात हुआ कि गणधर के अभाव मे धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन नही हसा, तब उसने उपयुक्त पात्र के अन्वेषण करने का प्रयत्न किया। उसका ध्यान इन्द्रभूति की ओर गया और वह तत्काल वद्ध ब्राह्मण का वेष बनाकर इन्द्रभूति के पास पहुँचा । अभिवादन के पश्चात् बोला-विद्वन् | मेरे गुरु ने मुझे एक गाथा सिग्वाई थी. उस गाथा का अर्थ मेरी समझ में अच्छी तरह से नही पा रहा है। मेरे गुरु इम समय मौन धारण किये जाने प्रत कृपाकर आप ही इसका अर्थ समझा दीजिये। उत्तर मे इन्द्रभूति ने कहा-मै तुम्हे गाथा का अर्थ इस शर्त पर समझा सकता है कि उस गाथा का अर्थ समझ जाने पर तुम मेरे शिष्य बन जाओगे। देवराज ने इन्द्रभति की शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली और उसने इन्द्रभति के सामने गाथा पढी। पंचेव प्रस्थिकाया छज्जीवणिकाया महव्वया पंच । प्रट्ठय पवयणमादा सहेउमो बंध-मोक्खो य॥ -धवला. पु० ६ पृ० १२६ १. अहिसा भूताना जगति विदित ब्रह्मपरम । न सा तत्रारम्भोऽम्त्यणरपि च यत्राथमविधी। ततम्तत्मिद्धयर्थ परम करणो ग्रथमुभयं, भवानेवाऽत्याक्षीन्न च विकृतवेषोपधिरत.। -वृहत्स्वयभूस्तोत्र २. श्वेताम्बर सम्प्रदाय मे ऐसी मान्यता है कि जू भक ग्राम की ऋजुकूला नदी के किनारे जब भगवान महावीर को अदालनात मा. तब देवता गणो ने आकर उनकी पूजा की। ज्ञान की महिमा की। देवताओं ने ममवसरण की रचना की, किन्त प्रथम देशना का परिणाम विरति-ग्रहग की दृष्टि मे शून्य रहा । प्रथम ममत्रमरण में भगवान महावीर की वाणी नही विगे। इसलिए उम दिन धर्मतीर्थ का प्रवर्तन न हो सका। आवश्यक नियुक्ति गाथा २३८ के अनुमार केवलज्ञान उत्पन्न होने पर महावीर रात्रि में ही मध्यमा के महामेन वन नामक उद्यान में चले गए। टीकाकार मलयगिरि के अनुसार ऋजुकला मे १२ योजन दूर मध्यमा नगरी के महामेन वन मे आये और वहाँ मोमिल ब्राह्मण के यज्ञ मे आये हुए ११ उपाध्यायो को उनके शिष्यो के साथ दीक्षित किया। वे महावीर के ११ गणधर हुए। ३. केवलणाणे समुप्पण्णे वि तत्थ तित्यागुप्पत्ती दो। दिव्वमुणीए किमट्ठ तत्थापउत्ती? 'गणिदाभावादो। मोहम्मिदेण तवरणे चेव गणिदो किण्ण होइदो' काललद्धीए विरणा असहायम्स देविदम्स तड्ढोयणसत्तीए प्रभावादो। सगपादमूलम्मि पडिवण्णमहन्वय मोत्तूण अण्णमुद्दिसिय दिब्वभूणी किण्ण पयदे साहावियादो। रग च सहावो परपज्जणियोगारुहो, प्रववत्थावत्तीदो। -धवला. पु० थपृ० १२१
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy