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________________ तेरहवीं और चौदहवी शताब्दी के विद्वान, आचार्य और कवि ४५३ के कवियों में तो अग्रणो थे ही, कि तु नाटकों के प्रणयन में भी दक्ष थे पापक ज्येष्ठभ्राता सत्य वाक्य आपको सूक्तियों को बड़ी प्रशंसा किया करते थे। हस्तिमल्ल ने पाण्ड्य नरेश का अनेक स्थानों पर उल्लेख किया है, पर उन्होने उनके नाम का उल्लेख नही किया। वे उनके कृपापात्र थ और उनकी राजधानी में अपने विद्वान प्राप्तजनो क साथ या वसे थ। पाण्डय नरेश ने सभा में उनका खूब सम्मान किया था। पाण्ड्य नरेश अपने भजबल में कर्नाटक प्रदेश पर शासन करते थे। ब्रह्मसूरि ने प्रतिष्ठा सारोद्धार में लिखा है कि वे स्वय हम्तिमल्ल के वश में हुए है, उन्हाने उनके परिवार के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला है। उन्होने लिखा है कि पाण्ड्यदेश में दीप गांडपत्तन के शासक पाण्ड्य राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा, वीर, कलाकुशल ओर विद्वानों का आदर करते थे । वहा भगवान आदिनाथ का रत्न सुवर्ण जटित सुन्दर मन्दिर था, जिसमे विशाखनदो आदि विद्वान मुनि रहने थे । कवि क पिता गोविन्दभट्ट यही के निवासी थे। पाण्ड्य राजानो का राज्य दक्षिण कार्नाटक में रहा है। काफिल वगेरह भी उसमें शामिल थे। इस देश में जैनधर्म का अच्छा प्रभाव रहा है। इस वंश में प्राय: मभी राजा जनधर्म पर प्रेम और आस्था रखते थे। कवि हस्तिमल्ल विक्रम की १४वी शताब्दी के विद्वान थे। कर्नाटक कवि चरित्र क का पार० नर्गसहाचार्य ने हस्तिमल्ल का समय ईसा की १३वी शताब्दी का उनराधं १२६० अोर विक्रम स० १३८७ निश्चित किया है। रचनाएं कवि की सात रचनाए उपलब्ध है। विक्रान्तकौरव, मेथिली कल्याण, अजनापयन जय प्रार मुभद्रा। ये चारों नाटक माणिकचन्द्र ग्रथमालाामें प्रकाशित हो चके है। प्रतिष्ठा पाठ प्राग जन सिद्धान्तभवन मे है और दो रचनाएं कन्नड भाषा की है अदिपूराण और थं पूराण। एनकी मल प्रतिया। मुलबिद्री अोर वगग जन मठा में पाई जाती है । कन्नड आदि पुराण का परिचय डा०ए०एन० उपाध्ये ने अंग्रेजी में हस्तिमल्ल एण्ड हिज आदिपुराण नामक लेख में कराया है। पं० नरसेन इन्होंने अपना कोई परिचय नहीं दिया। इनकी दो कृतियां उपलब्ध हैं। सिद्धचक्रकथा और जिणरत्तिविहाण कथा। सिद्ध चक्र कथा (श्रीपाल चरित)- इस ग्रन्थ में सिद्धाचक्र व्रतके माहात्म्य को व्यक्त करने वाली कथा दी हुई है। चम्पा नगरी के राजा श्रीपाल अगभोदय वस ओर उनके सातसौ साथी भयंकर कुष्ट रोग से पीड़ित हो गए। रोग की वृद्धि हो जाने पर उनका नगर में रहना असह्य हो गया। उनके शरीर की दुर्गध से जनता का वहां रहना भी दूभर हो गया। तब जनता के अनुरोध से उन्होने अपना राज्य अपने चाचा अरिदमन को दे दिया और १. कि वोगणागुणझंकृतः किमथवा साद्वैर्मधुस्यन्दिभिविभ्राम्यत्सहकारकोरकशिग्वाकर्णावतसरपि । पर्याप्ताः श्रवणोत्सवाय कवितासाम्राज्यलक्ष्मीपते। सत्य नस्तव हस्तिमल्लमुभगाम्तास्ता: सदासूक्तयः ।।-मै०० ना. २. दीपंगुडी पत्तनमस्तितम्मिन् हावलीतोरणराजिगोपुरैः । मनोहरागारसुरत्नसंभ्टतरुद्यानजर्भात्यमरावतीव ॥३ तद्राजगजेन्द्रमुपाण्ड्यभूपः कीर्त्या जगद्वचापितवान सुधर्मा । रराज भूमाविति निस्सपत्न: कलान्वितः सद्विबुधैः परीतः ॥४ तत्रास्ति सद्रस्नसुर्वर्णतुंगचंत्यालये श्रीवपभेश्वरो जिनः । विशाखनन्दीशमुनीद्रमुख्या:सच्यास्त्रवन्तो मुनयो वसन्ति ॥५ प्रशस्ति सग्रह, आग पृ० १६२
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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