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________________ तेरहवीं और चौदहवी शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि ४२५ प्रस्तुत ग्रन्थ में संस्कृत के २५२ श्लोक हैं। जिनमें आराधना, आराधक, पाराधनोपाय तथा पाराधना का फल, इन चारों को आराधना के चार चरण बतलाये हैं। गुण-गणी के भेदसे आराधना के दो प्रकार बतलाये हैं। साथ में सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ये पाराधना के चार गुण कहे। इन चारों पाराधनाओं के स्वरूप और भेद-प्रभेदों का सुन्दर वर्णन दिया है। चारित्र पागधना का स्वरूप और भेद-प्रभेदों का उनका काल और स्वामी बतलाये हैं। सम्यक तप पाराधना के स्वरूप भेद प्रभेद वर्णन करने के पश्चात ध्यान के भेद और स्वामी प्रादि का परिचय कराया गया है। द्वादश अनुप्रेक्षायों का वर्णन मस्थान विचयधर्मध्यान में परिणत कर दिया है। इस ग्रन्थ के कर्ता वर्तमान मैसूर राज्यन्तर्गत पनसोगे' निवासी मुनिरविचन्द्र है। ' ग्रन्थ में रचनाकाल दिया हुआ नही है। रट्टकवि अर्हद्दास यह जैन ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम नागकुमार था। यह कन्नड़ भापा के प्रकाण्ड विद्वान थे। कवि का समय सन् १३०० ईस्वी के आस-पास है । यह गंग मारसिह के चमपति काइमरस का वशज है । काइमरस वड़ा वीर और पराक्रमी था। वारेन्दुर के जीतने वाले राजा मारसिह का एक किला था। इस किले का किसी च वर्ता की मेनाने घेर लिया था। मारसिंह की आज्ञा से काडम रस ने बड़ी बहादुरी के साथ चक्रवर्ती की मेना को भगा दी, और ध्वना गिरादी, तथा वारह सामन्त योद्धाओं को परास्त किया। इसमे राजा बहन प्रसन्न हना । अतएव उसने काडमग्म को २५ ग्रामों की एक जागीर पारितोपिक में दे दी । इसी काडमरस को १५वा पीढ़ी में नागकुमार नाम का व्यक्ति हमा। कविन्द्र अहंदास इसी नागकुमार का पुत्र था। ___ इसने कन्नड में अदुमत नाम के महत्वपूर्ण ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की है। यह ग्रन्थ पूरा नहीं मिलता शकसंवतकी १४वीं शताब्दी में भास्कर नाम के आन्ध्र कवि ने इस ग्रन्थ का तेलगू भाषा में अनुवाद किया था। इस ग्रन्थ के उपलब्ध भाग में वर्षा के चिन्ह, आकस्मिकलक्षण, शकुन वायुचक गृहप्रवेश भूकप भूजात फल, उत्पात लक्षण इन्द्र धनुर्लक्षण प्रथम गर्भलक्षण, द्रोण सख्या, विद्युतलक्षण, प्रतिमूर्यलक्षण सवत्सरफल, ग्रहद्वेप मेघों के नाम कूलवर्ण, ध्वनिविचार, देशवृष्टि, मासफल, नक्षत्रफल, और सक्रान्तिफल आदि विषयों का निरूपण किया गया है। बालचन्द्र पण्डितदेव वालचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गए है। उनमें से एक बालचन्द्र का उल्लेख कम्बदहल्ली में कम्बदराय स्तम्भ में मिलता है। इनका समय शक सं० १०४० (वि० सं० ११५७) है। इनके गुरु का नाम राद्धान्तार्णव पारग अनन्तवीर्य और शिष्य का नाम सिद्धान्ताम्भोनिधि प्रभाचन्द्र था। (जैन लेख सं० भा०२ लेख नं० २६६ प०३९६) दूसरे बालचन्द्र वे है जिनका उल्लेख वूवनहल्लि (मैसूर) के १० वीं सदी के कन्नड़ लेख में बालचन्द्र सिद्धान्त भट्टारक के शिष्य कमलभद्र गुरुद्वारा एक मूर्ति की स्थापना की गई थी। (जैन लेख सं० भाग ४ प०७०)। तीसरे बालचन्द्र वे हैं जिनको शक सं९६६ में उत्तरायण संक्रान्ति के समय यापनीय सघ पुन्नाग वृक्ष मूलगण के बालचन्द्र भट्टारक को कुछ दान दिया गया था। (जैन लेख सं० भा० ४ पृ० ८१) । चौथे बालचन्द्र वे हैं जिनको सन् १११२ में मूलसंघ देशीगण पुस्तक गच्छ के प्राचार्य वर्धमान मुनि के शिष्य - १. पं० के भुजबली शास्त्री के अनुसार मैमूरजिलान्तर्खति कृष्णगजनगर तालुके में साले ग्राम मे लगभग ५ मील की दूरी पर अवस्थित हनसोगे (पनमोगे) ही आराधना समुच्चय का रचनास्थल है । वहां एक त्रिकूट जिनालय है जिसमें आदिनाथ और नेमिनाथ की मूर्तियां विराजमान हैं। -अनेकान्त वर्ष २३ कि० ५-६ पृ० २३४ २. श्री रविचन्द्र मुनीन्द्रः पनसोगे ग्राम वासिभिग्रन्थः । रचितोऽय मखिलशास्त्र प्रवीण विद्वन्मनोहारी॥ ४२ -
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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