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________________ तेरहवी और चौदहवी सताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि स्पष्ट है कि मूनिमेन ने कोई ग्रन्थ बनाया था, जो अब उपलब्ध नहीं है। कवि श्रीधरमेन नानागास्त्रो के पारगामी विद्वान थे, और बड़े-बड़े राजा लोग उन पर श्रद्धा रखते थे। वे काव्यशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान पार कवि थे। इनकी एकमात्र कृति 'विश्वलोचन कोश है, इसका दमग नाम मक्तावलि कोग हे जेगा कि 'मक्तावली विरचिता' ग्रन्थ के वाक्य में स्पष्ट है । हम कोश में ०४५३ श्लोक है । स्वर वण योर ककागद के वर्णक्रम में शब्दो का सकलन किया गया है। नानार्थ कोगा मे यह सबसे बडा कोश है। इग कोश की यह विशेपता है कि श्रीधरसेन ने एक शब्द के अधिक से अधिक अर्थ बतलाये है। उदाहरण के लिए 'कचक' शब्द को लीजिये । विश्वलोचन मे इसके १२ अर्थ बतलाये।, अमरकोश के चार पार मेदनी में दश अर्थ बतलाये है। प्रशस्ति के चाथ पद्य में 'पदविदा च पूरे निवामी' वाक्य से श्रीधर गेन का निवासस्थान ज्ञात होता है, पर उसके सम्बन्ध में इस समय कुछ बना शक्य नहीं है। कवि ने तय लिया है कि मन इम कोश की रचना कवि नागेन्द्र और अमर्गगह आदि के कोशी का मार लेकर की है। कांग मराव पूर्ण है। कोग में रचनाकाल नहीं दिया। किन्तु इसकी रचना मेदनी पार हेमचन्द्र के बाद हई है अत श्रीधरसेन का समय विक्रम की १३वी शताब्दी का उपान्त्य जान पडना हे । विजयवर्णी विजयवर्णी ने अपना का परिचय नही दिया । कवन गुरू का ग्रार जिमको प्रेरणा मे ग्रन्थ बनाया उगका उल्लेख तो किया है किन्तु अपने सघगण-गन्छादि अोर समय का काई उल्लेख नहीं किया। यह काव्यशास्त्र के अच्छे विद्वान थे। इन्होंने बग नरेन्द्र कामिगय की प्ररणा में 'शृगागगर्गवचन्द्रिका' नाम का ग्रन्थ बनाया था जमा कि निम्न पूप्पिका वाक्य से प्रकट है - इतिपरम जिनेन्द्रवदनचन्दिरविनिर्गतस्याद्वादचन्द्रिकाचकोर विजयकोतिमुनीन्द्रचरणाब्जचञ्चरीकविजयवणिविरचिते श्रीवीरनरसिंह कामिराज बङ्गनरेन्द्रकोशर दिन्दुसं निभकोतिप्रकाशके शृगारार्णव चन्द्रिका नाम्नि अलङ्कारसंग्रहे वर्णगणफलनिर्णय नाम प्रथमः परिच्छेदः।" सोमवशी कदम्ब गजानी के द्वारा सरक्षित भूमिका शासन करने वाला नरेश वीर नर्गसह हया। इसने सन ११५७ ई० मे वगवाडि में अपनी राजधानी स्थापित की थी । इमने प्रजा पर धर्म और न्यायनीति से शासन किया था। इनका पुत्र चन्द्रशेखर राजा हुया इगने सन् १२० से १२२८६० तक, पार इनके छोटे भाई पाण्ड्य वग शासक हुए उन्होंने सन् १२२५ मे १२३६ तक राज्य किया। सन् १२३६ मे १२८४ तक पाण्ट्यवग की वहिन विट्टल महादेवी ने राज्य का मचालन किया। प्रार सन १२४५ मे १२६४ तक महागना विट्ठल देवो के पुत्र कामिराय ने १. मनान्वये मालमत्वगतिथी श्रीमान जायत कविमुनिगेन नामा। आन्वीदासी मकलशास्त्रमयी च विद्या यग्या स वाद पदवी न दवीयमी म्यान ॥१ तस्मादभूनखि नवादमापाररश्वा विश्वागतमवनीतलनायकानाम् । श्री श्रीधर सकलमत विगुम्फितन्व पीयूपपानकृतनिर्जर भाग्नीक ॥२ तम्पातिगायिनि ये. पथि जागरूक धीलोचनस्य गुरशासनलोचनग्य । नाना कवीन्द्ररचितानभिधान कोशानाकृष्यलोचनामवाय मदीपि कोग ।।३ -विश्वलोचन कोश प्र० २ नागेन्द्र गथित कोशममुद्रमध्ये नानाकवीन्द्रमुग्वशुक्ति ममुद्भवेयम् । विद्वदगृहादमरनिर्मित पट्टमूने मुक्तावली विरचिता हृदि मनिधातुम् ॥६ -विश्वलोचन कोश प्र. ३. श्रीमद्विजयवीयाम्य गुरुगजपदाम्बुजम । मदीयचित्रकासारे म्थेयात मद्धधीजले । ४. इत्थ न पाथितेन मयाऽलकारसग्रह । क्रियते मरिणा नाम्ना शृगागर्गवचन्द्रिका १-२२
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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