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________________ ४०० जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ तीसरे रामकीति भट्टारक वादिभूषण के पट्टधर थे, जिनका बिम्ब प्रतिष्ठित करने का समय संवत् १६७० है। यह रामकीर्ति १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के विद्वान हैं । चौथे रामकीति का नाम भट्टारक सुरेन्द्रकीति के पटधर के रूप में मिलता है। इनमें से प्रथम रामकीर्ति का सम्बन्ध ही विमलकीर्ति के साथ ठीक बैठता है। यह राम कीति के शिष्य थे, जिनकी लिखी हुई प्रशस्ति चित्तौड़ में संवत् १२०७ की उत्कीर्ण की हुई उपलब्ध है । रामकीर्ति के शिष्य यश:कीर्ति ने 'जगत सुन्दरी प्रयोगमाला' नामके वैद्यक ग्रन्थ की रचना की है। जिनका समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी है । क्योंकि यशःकीति ने जगत् सुन्दरी प्रयोगमाला में अभयदेव सूरि का शिष्य धनेश्वर सूरि का (सं० ११७१) का उल्लेख किया है। विमलकीति की एक मात्रकृति सुगन्धदशमी कथा है । जिसमें अपभ्रशभाषाके ८ कड़वकों में भाद्रपद शक्ला दशमी के व्रत की कथा का वर्णन करते हए उसके फल का विधान किया गया है। कविने दशवीव्रत के अनुष्ठान करने की प्रेरणा की है। ग्रंथ में रचना काल नहीं दिया। इन के गुरु रामकीर्ति का समय विक्रम की १३वीं शताब्दी का पूर्वाधं-(सं० १२०७) है । अतः विमलकीति का समय भी विक्रमकी १३वीं शताब्दी का पूर्वार्ध सुनिश्चित है। मुनि सोमदेव मुनि सोमदेव व्याकरण शास्त्र के अच्छे विद्वान थे । इन्हों ने अपनी शब्दचन्द्रिका वृत्ति में अपनी गुरुपरम्परा और संघ-गण गच्छादिक का कोई उल्लेख नहीं किया। यह शिलाहारवंश के राजा भोज देव (द्वितीय) के समय हए हैं । कोल्हापुर प्रान्त के अर्जरिका नामक ग्राम के 'त्रिभवन तिलक' नामक जैन मन्दिर में, जो महामण्डलेश्वर गण्डरादित्य देव द्वारा निर्मापित किया गया था। उसमें भगवान नेमिनाथ जिनके चरण कमलों को आराधना के बल से और वादीभ वज्रांकुश विशालकीति पण्डितदेव के वैयावृत्य से मुनि सोमदेव ने शक सं० ११२७ (वि० सं० १२६२) में वीर भोजदेव के विजयराज्य में 'शब्द चन्द्रिका' नाम की वृत्ति बनाई । इस वृत्ति चन्द्र के दीक्षित शिप्य 'भुजंग सुधाकर' (नागचन्द्र) और उनके शिप्य हरिचन्द्र यति के लिये उक्त संवत में बनाकर समाप्त की थी। जैसा कि उसकी प्रशस्ति के निम्न पद्य से प्रकट है : 'श्री मूलसंघ जलजतिबोधमानोर्मेधेन्दु दीक्षितभुजंगसुधाकरस्य । राद्धान्त तोयनिधिवृद्धि करस्यवृत्ति रेभे हरीन्दु यतये वर दीक्षिताय ॥२॥ शब्दार्णव की रचना गुणनन्दी ने की थी, क्यों कि मुनि सोमदेव ने शब्दचन्द्रिका वृत्ति को गुणनन्दी के शब्दार्णव में प्रवेश करने के लिये नौका के समान बतलाया है। तथा 'श्री सोमदेव यति-निमित मादधाति, यानौः प्रतीत-गुणनन्दित-शब्दवाधौं । सेयं सताममलचेतसि विस्फुरन्ती, वृत्तिः सदानुतपद परिवतिषीष्ट ।। प्रेमी जी ने दो नागचन्द्र नाम के विद्वानों का उल्लेख किया है। एक नागचन्द्र पम्परामायण के कर्ता हैं. जिन्हें अभिनव पम्प कहा जाता है यह गृहस्थ विद्वान् थे। दूसरे नागचन्द्र लब्धिसार के टीका कर्ता हैं यह मुनि थे। इन द्वितीय नागचन्द्र के शिप्य हरिचन्द्र के लिये मुनि सोमदेव ने वृत्ति बनाई है । इन हरिचन्द्रयती को 'राधान्त तोय १. सएपि ग्राफिका इंडिया जि०२ पृष्ठ ४२१॥ २. देखो, जगत्सुन्दरी प्रयोगमाला प्रशस्ति । ३. स्वस्ति श्री कोल्लापुरदेशान्तर्वार्जुरिका महास्थान युधिष्ठरावतार महामण्डलेश्वर गंडरादित्य देव निर्मापित त्रिभुवन तिलक जिनालये श्रीमत्परमपरमेष्ठि श्रीनेमिनाथ श्रीपादपमाराधनबलेन वादीभवनांकुश श्रीविशालकीर्ति पंडितदेव वैयावृत्यतः श्रीमच्छिलाहार कुल कमल मार्तण्डतेजः पुजराजाधिराज परमेश्वरपरम भट्टारकपश्चिम चक्रवति श्रीवीर भोजदेव विजय राज्ये शकवर्षक सहस्रक शतसप्तविंशति ११२७ तम क्रोधन सम्वत्सरे स्वस्ति समस्तानवद्यविद्याचक्रवर्ति श्री पूज्यपादानुरक्त चेतसा श्रीमत्सोमदेव मुनीश्वरेण विरचितेयं शब्दार्णव चन्द्रिका नाम वृत्तिरिति । -जैन अन्य प्रशस्ति सं०भा० १० १९६
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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