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________________ तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि ३६१ हिजरी सन् ५७२ सन् ११६६ (वि० सं० १२५३ ) में मुईजुद्दीन मुहम्मद गौरी ने कुमारपाल पर आक्रमण कर उसे परास्त किया, और तिहुवनगिरी का दुर्ग वहारुद्दीन तुघरिल को सौप दिया । उस समय तिहुवन गिरि नष्ट भ्रष्ट हो गया था और वहा से हिन्दू और जैन परिवार इधर-उधर भाग गये थे। नगर वीगन हो गया था। नि विनयचन्द्र ने णिज्झर पचमी कहारास, की रचना तिहवण गरि की तलहटी में की थी, और चनडी की रचना का स्थल अजयपाल नरेन्द्रकृत विहार को बतलाया है. चनड़ी की रचना मे पूर्व उदयचन्द्र मुनि हो गये थे । उसका उल्लेख, माथुर सहि उदय नुणीसरु, वाक्य में किया है। सुगंधदशमो कथा उनके गृहो जीवन की रचना है। इस सब कथन से सुनिश्चित है कि मुगन्ध दशमी की कथा का रचना काल सन् १०५० (वि० सं० १२०७) है। पण्डित महावीर यह वादिराज पण्डित धरमेन के शिष्य थे। धाग नगरी के निवासी थे । न्याय शास्त्र, व्याकरण शास्त्र और धर्मशास्त्र के विद्वान थे। सन ११९२ (वि०सं० १२४६) में जब शहाबुद्दीन गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली और अजमेर पर अधिकार कर लिया था, तब मदाचार के विनाश के भय से आशाधर जी वहुत मे परिजनो ओर परिवार के लोगों के साथ विन्ध्यवर्मा गजा के मालवमण्डल धाग नगरो मे आ वम थ । उम समय अागाधर जी सभवतः किशोर ही होंगे । उन्होंने उक्त पण्डित महावीर से प्रमाण शास्त्र और व्याकरण का अध्ययन किया था। इससे इनका समय विक्रम की तेरहवी शताब्दी का मध्य काल है। कवि लाखु या लक्ष्मण कवि लक्ष्मण का कुल यादव या जायम है। जो प्रसिद्ध यदुवंश का विकृत रूप है। यह प्रसिद्ध क्षत्रिय कल है । कवि के प्रपिता का नाम कोमवाल था, जिनका यश दिक चक्र में व्याप्त था। उनके मात पुत्र थे-अहण, गाहल. साहल, सोहण, मइल्ल, रतन और मदन । ये मातों ही पुत्र कामदेव के समान गुन्दर रूप वाले और महामति थे। इन में प्रस्तुत कवि के पिता माहल धोठी थे। ये मातों भाई और कवि लक्ष्मण अपने परिवार के साथ पहले त्रिभवनगिरि या तहनगढ़ के निवासी थे। उस समय त्रिभवनगिरि जन-धन ग ममद्ध तथा वभव से युक्त था । परन्तु कुछ समय बाद त्रिभुवनगिरि की समृद्धि विनष्ट हो गई थो-उमे म्लेच्छाधिप मुइजुद्दीन मुहम्मद गारो ने बल पूर्वक घरा १. तिहुयगणगिरि नलहट्टी रह गगउ रइउ,-माथरसंघहं मुगिवर विगायचदि कहिउ । २. तिहयणगिरि जगि विकावायउ, मग्गखंडणं धग्यलि आयउ । तहि णिवमते मुनिवरे अजयगगरिदहों गजविहारहि ।। वेगे विरइय चूनडिय सोहहु मुगिण वर जे सुयधारहि ।। चूनड़ी प्रशस्ति ३. म्लेच्छेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते सृवत्त क्षति त्रासाद्विन्ध्य नरेण्दो परिमलम्फूर्जत्रिवर्गोमि । प्राप्तो मालव मण्डले बहु परीवार: पुरीमावसन, । यो धागमपठज्जिनप्रमितिवाक्शास्त्र महावीरतः ।।५।। अनगारधर्मामृत प्रशस्ति ४. यदुकुल प्रसिद्ध क्षत्रिय कुल है। यदुकुल ही यादव और बिगड़कर जायव या जायस बन गया है। इस कुल का राज्य शूरसेन देश में था। शौरीपुर, मथुरा और भरतपुर में यदुवंशियों का राज्य रहा है। श्रीकृष्ण और नेमिनाथ तीर्थकर का जन्म इसी कुल मे हुआ था । यह क्षत्रिय वंश वर्तमान में वैश्य कुल में परिवर्तित हो गया है।
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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