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________________ ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य ३६५ बल्लाल को मालवराज लिखा है, और यह भी लिखा है कि बल्लाल पर चढ़ाई करने वाले सेनापति ने शत्रु का शिर छेद करके कुमारपाल की विजय पताका उज्जयिनी के राजमहल पर फहरा दो । उदयगिरि ( भेलसा) में कुमारपाल के दो लेख सं० १२२० और १२२२ के मिले हैं, जिनमें कुमारपाल को अवन्तिनाथ कहा गया है। मालवराज बल्लाल को मार कर कुमारपाल अवन्तिनाथ कहलाया । मंत्री तेजपाल के ग्राबू के लूण वसति गत सं० १२८७ के लेख में मालवा के राजा बल्लाल को यशोधवल द्वारा मारे जाने का उल्लख है' । यह यशोधवल विक्रमसिंह का भतीजा था। विक्रमसिंह के कैद हो जाने पर गद्दी पर बैठा था । यह कुमार पाल का मांडलिक सामन्त अथवा भृत्य था, मेरे इस कथन की पुष्टि अचलेश्वर मन्दिर के शिलालेख गत निम्न पद्य से भी होती है " तस्मान्मही "विदितान्यकलत्रपात्र, स्पर्शो यशोधवल इत्यवलम्बत े स्म । यो गुर्जर क्षितिपतिप्रतिपक्षमाजौ, बल्लालमालभत मालव मेदिनीन्द्रम् ॥" यशोधवल का वि० सं० १२०२ (सन् १९४५) का एक शिलालेख जरी गांव से मिला है, जिसमें 'प्रमार वंशोद्भव महामण्डलेश्वर श्रीयशोधवल राज्ये' वाक्य द्वारा यशोधवल को परमार वंश का मण्डनेश्वर सूचित किया है । यशोधवल रामदेव का पुत्र था, इसकी रानी का नाम सौभाग्यदेवी था । इसके दो पुत्र थे, जिनमें एक का नाम धाराव श्रीर दूसरे का नाम प्रल्हाददेव था । इनमें यशोधवल के बाद राज्य का उत्तराधिकारी धारावर्ष था । वह बहुत ही वीर और प्रतापी था । इसकी प्रशंसा वस्तुपाल तेजपाल प्रशस्ति के ३६वं पद्य में पाई जाती । धारावर्ष का म० १२२० एक लेख 'कायद्रा गांव के बाहर, काशी विश्वेश्वर के मन्दिर से प्राप्त हुआ है । यद्यपि इसकी मृत्यु का कोई स्पष्ट उल्लेख नही मिला, फिर भी उसकी मृत्यु उक्त सं० १२२० के समय तक या उसके अन्तर्गत जाननी चाहिए । कुमारपाल जब गुजरात की गद्दी पर बैठा, तब चौलुक्यराज के राज्य का विस्तार सुदूर प्रान्तों में था । कुमारपाल उसकी व्यवस्था में लगा हुआ था, उसका मंत्री उदयन था । उदयन का तीसरा पुत्र चाहड बड़ा साहसी और समरवीर था । उस समय चाहड किसी कारणवश कुमारपाल से प्रसन्तुष्ट हो शाकंभरी नरेश श्रर्णोराज से आ मिला। उसकी कूटनीति के कारण मालवा का राजा बल्लाल और चन्द्रावती का परमार विक्रर्मासह, और सपा दलक्ष का चौहान राज ये तीनों परस्पर में मिल गए। इन्होंने कुमारपाल के विरुद्ध जबर्दस्त प्रतिक्रिया की । परन्तु वे उसमें सफल नही हो सके । कुमारपाल ने अर्णोराज से युद्ध कर उसे शरणागत होने को वाध्य किया, और लौटते समय विक्रमसिंह की कैद कर पिंजड़े में बन्द कर ले आया, प्रोर उसका राज्य उसके भतीजे यशोधवल को दे दिया । फिर उसने बल्लाल को मारा और इस तरह उसने तीन राजाओं को परास्त कर मालवा को गुजरात में मिलाने का सफल प्रयत्न किया । मृत्यु बल्लाल की को उल्लेख तो अनेक प्रशस्तियों में मिलता है । बड़नगर से प्राप्त कुमारपाल की प्रशस्ति के १५ श्लोकों में बल्लाल की हार और कुमारपाल की विजय का उल्लेख किया गया है। बड़नगर की १. रोदः कदरवति कीति लहरी लिप्तामृतां शुद्यतेप्रद्युम्नवशोयशोधवल इत्यासीत्तनूजस्ततः । यश्चौलुक्य कुमारपाल नृपतिः प्रत्यर्थिनामागतं, मत्वा सत्वरमेव मालवपति बल्लालमालब्धवान् ॥ २. शत्रु श्रेणी गलत्रिदलनोन्निद्र निस्त्रिशधारो, धारावर्ष: समजनि सुतस्तस्य विश्व प्रशस्यः । कोकान् प्रधनवा निश्चले यत्र जाताश्चोतन्नेत्रोत्पल जलकरणः कोकरणाधीशपत्न्यः । ३. देखो, भारत के प्राचीन राजवंश भा० १ ० ७६-७७ । ४. Epigraphica Indica V.3P.० २००
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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