SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ स्वातौ श्वेत-सरोवरे सुरपुरं यातो यतीनां पतिमध्याह्न दिवसत्रयानशनतः श्रीमल्लिषेणो मुनिः ।। लक्ष्मण देव कवि लक्ष्मण देव का वंश पुरवाड था। पिता का नाम रयण देव या रत्न देव था। इनकी जन्मभूमि मालव देशान्तर्गत गोनन्द' नामक नगर में थी। यह नगर उस समय जैन धर्म और विद्या का केन्द्र था। वहां अनेक उत्तंग जिन मन्दिर तथा मेरु जिनालय भी था । कवि अत्यन्त धार्मिक धन सम्पन्न और रूपवान था। और निरन्तर जिनवाणी के अध्ययन में लीन रहता था। वहां पहले पतंजलिने व्याकरण महाभाष्य की रचना की थी। जो विद्वानों के कण्ठ का आभारण रूप था। इससे गोनद नगर की महत्ता का आभास मिलता है । यह नगर मालवदेश में था। और उज्जन तथा भेलसा (विदिशा) के मध्यवर्ती किसी स्थान पर था । वहा के निवासी कवि जिनवाणी के रस का पान किया करते थे। इनके भाई का नाम अम्बदेव था, जो कवि थे, उन्हान भी किनी ग्रन्थ की रचना की थी। पर वह अनुपलब्ध है । मालव प्रान्त के किसी शास्त्र भण्डार में उसकी तलाश होनी चाहिये । कवि ने ग्रन्थ में रचना काल नहीं दिया, जिससे यह निश्चित करना कठिन है कि ग्रन्थ कव रचा गया। कवि ने गुरु परम्परा और पूर्ववर्ती कवियों का कोई उल्लेख नहीं किया । ग्रन्थ की प्रति लिपि मंवत् १५१० की प्राप्त हई है। उससे इतना ही कहा जा सकता है कि ग्रन्थ सं० १५१० मे पूर्व रचा गया है। कितने पूर्व रचा गया, यह विचारणीय है । ग्रन्थ सभवतः ११वी शताब्दी में रचा गया है। प्रन्थ परिचय प्रस्तुत मिणाह चरिउ' में चार संधियां और ८३ कडवक है जिनकी ग्रानुमानिक श्लोक संख्या १३५० के लगभग है। ग्रन्थ में चरित और धार्मिक उपदेश की प्रधानता होते हए भी वह अनेक मून्दर स्थलों से अलंकन है ग्रन्थ की प्रथम संधि में जिन और सरस्वती के स्तवन के साथ मानव जन्म को दुर्लभता का निर्देश करते हए सज्जनदुर्जन का स्मरण किया है और फिर कवि ने अपनी अल्पज्ञता को प्रदर्शित किया है। (मगध देश और राजगह नगर के कथन के पश्चात् राजा श्रेणिक (बिम्बसार) अपनी ज्ञान पिपामा को शांत करने के लिये गणधर से नेमिनाथ का चरित वर्णन करने के लिये कहता है। वराडक देश में स्थित वारावती या द्वारावती नगरी में जर्नादन नाम का राजा राज्य करता था, वही शौरीपुर नरेश समुद्रविजय अपनी शिव देवा के साथ रहते थे। जरासन्ध के भय से यादव गण शौरीपुर छोड़कर द्वारिका में रहने लगे। वही उनके तीर्थकर नेमिनाथ का जन्म हुआ था। यह कृष्ण के चचरे भाई थे। बालक का जन्मादि संस्कार इन्द्रादि देवों ने किया था। दूसरी मधि में नेमिनाथ को युवावस्था, वसत वर्णन और जल क्रीड़ा आदि के प्रसंगों का कथन दिया हुआ है । कृष्ण को नेमिनाथ के पराक्रम से ईपी हो होने लगती है और वह उन्हें विरक्त करना चाहते हैं। जूनागढ़ के राजा की पुत्री राजमती से नेमिनाथ का विवाह १. प्रस्तुत 'गोणंद' नगर जिसे गोदन, या गोनद्ध कहा जाता था, मालव देश में अवस्थित था। डा० दशरथ शर्मा एम०ए० डी.लिट के अनुमार गोनर्द या गोनद्ध नगर पनञ्जलि की जन्म भूमि था । पतञ्जलि गोनर्दीय के नाम से प्रमिद्ध थे । पतञ्जलि ने पुष्प मित्र शक मे यज्ञ करवाया था। उन्होंने व्याकरण महाभाप्य की रचना इसी नगर में की थी। पतञ्जलि की गोनर्दीय संज्ञा भी उनके महाभाग्य की रचना का मकेत करती है। इसी से कवि लक्ष्मण ने भी नेगिनाथ चरित की प्रशस्ति में वहाँ प्रथम व्याकरण सार के रचे जाने का उल्लेख किया है। सूत्त नियात की बुद्ध घोपीय टीका 'परमत्थज्योतिका' के अनुसार भी गोनद्ध या गोनर्द की स्थिति मालवदेश में थी। बद्धघोष ने उज्जयिनी गोनद वैदिश और वनमाय (तुम्बवन) का एक साथ वर्णन किया है। इसमें गोणंद नगर की स्थिति का स्पष्ट प्रतिभाष हो जाता है। See Studies in the Geographyof Ancient and Medieval India p. 206—218)
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy