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________________ ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य २९७ से १२ मील दक्षिण-पश्चिम की ओर है। यहां के जैन मन्दिर में रहते हुए इन्होंने महापुराण की रचना की थी। उसका कवि ने तीर्थरूप में उल्लेख किया है। इस समय भी वहां चार जैन मन्दिर हैं। इन मन्दिरों में शक सं० ८२४, ८२५, ६७५, ११६७, १२७५ और १५६७ के शिलालेख अंकित हैं। मूलगुण्ड के एक शिलालेख में प्राचार्य द्वारा सेनवंश के कनकसेन मुनिको नगर के व्यापारियों की सम्मति से एक हजार पान के वृक्षों का एक खेत मन्दिरों की सेवार्थ देने का उल्लेख है । एक मन्दिर के पीछे पहाड़ी चट्टान पर २५ फुट ऊँची एक जैन मूर्ति उत्कीर्ण की हुई है । संभव है मल्लिषेण मठ भी इसी स्थान पर रहा हो। मल्लिपेण के एक शिष्य इन्द्रसेन का समय सन् १०६४ है । मल्लिषेण का समय उससे एक पीढ़ी पूर्व है __ आपकी निम्नलिखित छह रचनाएं उपलब्ध हैं, जिनका परिचय निम्न प्रकार हैं-महापुराण, नागकुमार, काव्य, भैरव पद्मावती कल्प, सरस्वती मंत्र कल्प, ज्वालिनी कल्प और काम चण्डाली कल्प। १. महापुराण-यह संस्कृत के दो हजार श्लोकों का ग्रन्थ है। इसमें त्रेसठ शलाका पुरुषों को संक्षिप्त कथा दी है । रचना सुन्दर और प्रसादगुण से युक्त है। इस ग्रन्थ की एक प्रति कनड़ी लिपि में कोल्हापुर के लक्ष्मीसेन भटटारक के मठ में मौजद है। यह ग्रन्थ अभी अप्रकाशित है। २. नागकुमार काव्य-यह पांच सौ का छोटा-सा खण्ड काव्य है, जो ५०७ श्लोकों में पूर्ण हया है। इसके प्रारम्भ में लिखा है, कि जयदेवादि कवियों ने जो गद्य-पद्यमय कथा लिखी है, वह मन्दबुद्धियों के लिये विषम है । मैं मल्लिषेण विद्वज्जनों के मन को हरण करने वाली उसी कथा को प्रसिद्ध संस्कृत वाक्यों में पद्यबद्ध रचना करता हूं'५ । यह काव्य बहुत ही सरल और सुन्दर है । ३.भैरवपद्मावती कल्प-यह चार सौ श्लोकों का मंत्र शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है इसमें दश अधिकार हैं। यह बंधूपेण की संस्कृत टीका के साथ प्रकाशित हो चुका है। ४. सरस्वती पल्प-यह मंत्र शास्त्र का छोटा-सा ग्रन्थ है। इसके पद्यों की संख्या ७५ है यह भैरव पद्मावती कल्प के साथ प्रकाशित हो चुका है। ५. ज्वालामालिनी कल्प-इसकी सं० १५६२ की लिखी हुई एक १४ पत्रात्मक प्रति स्व० सेट माणिकचन्द्र जी के ग्रन्थ भण्डार में मौजूद है। कामचण्डाली कल्प- इसकी प्रति से०प० दि. जैन सरस्वती भवन ब्यावर में मौजद है। ७. सज्जन चित्तवल्लभ-नाम का एक २५ पद्यात्मक संस्कृत ग्रन्थ है, जो हिन्दी पद्यानुवाद और हिन्दी टीका के साथ प्रकाशित हो चुका है, वह इन्हीं मल्लिपेण की रचना है या अन्य की है। यह विचारणीय है। श्री कुमार कवि श्री कुमार कवि ने अपना कोई परिचय नहीं दिया। और न अपने गुरु का ही नामोल्लेख किया है। कवि की एक मात्र कृति 'पात्म प्रबोध' है । जो अपने विषय का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । और जिसे कवि ने अपने प्रात्मप्रबोधनार्थ रचा है, जैसा कि ग्रंथ के अन्तिम वाक्यों से प्रकट है : "श्रीमत्कुमार कविनात्मविबोधनार्थमात्मप्रबोध इति शास्त्रमिदं व्यधायि" १ देखो, बम्बई प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक पृ० १२० २ देखो, जन शिलालेख सं० भाग २ पृ० १५६ ३ देखो, बम्बई प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक पृ० १२० ४ "अंतु माडिसी श्रीमद्दमिलसंघवन वसंत समयहं सेनगण, मगणं नायकरूं मालनूरान्वय शिरशेखरमेनिसिद श्रीमन मल्लिषेण भट्टारकर प्रियाग्रशिष्यरूं तन्नन्वयद गुरुगलु मेनिसिद श्री मदीन्द्रसेन भट्टारकर्ग-विनयर्दिकर कमललंगलं मुगिदु । -देखो.सन् १०६४ कालेख
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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