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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहाग-भाग २ उमका मुल्य तो पाठक प्रांकगे ही। मेरी भावना है कि भगवान महावीर की कृपा से इनका बहत ममय तक प्रायुप्य वना रहे-'भवन्तु दीर्घायुपः श्री परमानन्द शाम्विणः' इति भगवतः प्रार्थयते'। ___ इन प्राचार्यो मे मे कई की जीवनी और कई पर विद्वान लेखक ने अपनी और मे टिप्पणियां दी हैं। इस कार्य की महत्ता समझने के लिये कुवलयमाला, लीलावती, धूर्ताख्यान और उपमिति भवप्रपंच कथा आदि को देखना हितकर हो सकता है। हमें आशा है कि समुचित ग्रन्थों का सामान्य अध्ययन भी इस कार्य में महायक होगा। दशरथ शर्मा एम. ए. डी. लिट
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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