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________________ जैन धर्म का प्राचीन इतिहाम-भाग २ चन्द्र नन्दि ये मलसंघ के विद्वान थे। इन्हें परमार्हत उपाध्याय विजयकीति की सम्मति मे चन्द्रनन्दि आदि द्वारा प्रतिष्ठापित उरनूर के जैन मन्दिर के लिये माधववर्म के पुत्र कोंगुणि वर्म धर्म महाराजाधिराज (अविनीत) ने, जो जैनधर्म का अनुयायी था और कलियुगो युधिष्ठिर कहलाता था । अपने कल्याण के लिये अपने बढ़ते हुए राज्य के प्रथम वर्ष की फाल्गुन सुदी पचमी को-कोरिवुन्द देश में 'वेन्नेलकरनि' नाम का गांव प्रदान किया था। और पेरूर एवा नियडिगल-जिनालय को वाह्य चगी का चौथाई कापिण दिया था। यह लेख गुप्त काल में पूर्ववर्ती है और नोणमगल (लक्कर परगना) में ध्वस्त जैन वस्ति के ताम्र पत्रों पर अकित है, जो जमीन में मिले है। लेख समय रहित है। राईस सा० इमे ४२५ ईस्वी का मानते है ।' श्रीदत्त श्रीदत्त नाम के दो विद्वान प्राचार्यों का नामोल्लेख मिलता है । एक श्रीदत्त वे है जिनका नाम चार भागतीय प्राचार्या में से एक है । वे बड़े भारी विद्वान् और तपस्वी थे। आचार्य देवनन्दि की तत्त्वार्थ वृत्ति के अनुसार भगवान महावीर के साक्षात्शिप्य गणधर और श्रुतके वलियो के वाद अंग-पूर्वादि के पाठी जो प्राचार्य हुए हैं, और जिन्होंने दशवकालिकादि सूत्र उपनिवद्ध किये वे पारातीय कहलाते हैं। विनयदत्त, श्रीदत्त, शिवदत्त और अर्हदत्त ये चार पागतीय आचार्य दा है। इन्हे इन्द्रनन्दि ने अग-पूर्वधारी बतलाया है। इन चारों में से श्रीदत्त को छोड कर अन्य तीन का भी यही परिचय जानना चाहिये । वे सब अग-पूर्वधारी थे। दूसरे श्रीदत्त दसरे श्रीदत्त वे है जो दार्शनिक विद्वान के रूप में लोक प्रसिद्ध रहे है। वे दीप्तिमान तपस्वी और त्रेसठ वादियों के विजेता थे। देवनन्दि ने जनेन्द्र व्याकरण के 'श्रीदत्तरय स्त्रियाम' (१।४।३४) सूत्र में श्रीदत्त का स्मरण किया है। इस सत्र में श्रीदत्त के मत का उल्लेख किया है, और बतलाया है कि श्रीदत्त प्राचार्य के मत से गुणहेतूक पञ्चमी विभक्ति होती है । परन्तु यह कार्य स्त्रीलिङ्ग में नहीं होता। अस्तु, १. देखो, जन ले खमंग्रह भा० २ लेख नं० ६० पू० ५५ २. देवो मर्कग का ताम्र पत्र, जैन लेख संग्रह भाग २ पृ० ६०१ ३. आरातीयः पनगचायः कालदोषात्संक्षिप्तायर्बल शिष्यानुग्रहार्थ दशवकालिकाद्युपनिबद्धं तत्प्रमारणअर्थतस्य देवेदमिति क्षीरार्णव जल घट गृहीतमिव । (तत्त्वा० वृ० अ०१ मूत्र २०) ४. विनयधरः श्रीदत्तः शिवदत्तो ऽन्योऽर्हदत्त नामते । आरातीयाः यतयः ततोऽभवन्नङ्गपूर्वधराः ।। २४ -इन्द्रनन्दि श्रुतावतार २४
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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