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________________ ( १३ ) हडपने के लिये गिद्ध को सो नजर लगाये रहते हैं इनसे तोयमेरिका श्रीर युरुप के वे ईसाई अच्छे हैं जो प्रति वर्ष करोड़ों रुपया इकट्ठा काक हिन्दुस्तान में भेजते हैं . और इन निगराधार विधवाओं को खाने . लिये अन्न और पहनने के लिये कपडा देते हैं . चाहे वे किसी उद्देश्य से ऐसा करते हो परन्तु उनके इस दगा धर्म के मागे हमारे दया धर्म को बोलने के लिये कुछ गुजायश नहीं है • बन्धुना ! समाज को इन निरपराध विधवानों को दुर्दशा सुधारना और इस हिन्द जाति कोहास से बचाना अगर मजूर हे तो विधवा विवाह की प्रथा का स्वीकार करना पड़ेगा और जितना जल्दी हो सके उतना ही जल्दी इसको क्रियात्मक ( Practical ) बनाना पड़ेगा। इस एक प्रथा के चल जाने से कई किस्म की कुनथाप एक दम रुक जावेगी . कन्या-क्रय-विक्रय की कुप्रथा , नाश हो जावेगा , पचास २ वर्ष को उम्र में पहुंच कर भी अपनो तन्दुरस्तो शादी करने के योग्य बतलान वाले बूढ़ा के लिये उनके योग्य विधवाए मिलने लग जागो तो कुचागे न्याओ का जीवन नष्ट नहीं होगा । विधुरा का विधवाश्री से विवाह होने लग जावेगा तो कन्यामा की 'कमी का सवाल हल होजाने से सब सम्बन्ध योग्य होने लग जायेंगे और विचारे समाज के सांड कहाने वाले क्वारों क घर वसने लग जावेंगे विधवाश्रा का पापमय जीवन शान्ति मय हे। जावेगा। कुवारी कन्याश्री का व्याह उन्हों के योग्य अच्छे और कंवारे लडकी से हो सकेगा । व्यभिगर और दुराचार, गर्भ पात और मृण हत्याओं से जो यह समाज कलकत हो रहा है वह भो रुक जावेगा . रंडवों को तोन तोन और गर चार मरतया शादियां करने में जो वार २ बहुत रुपया खर्च करना पड़ता है, वह न करना पड़ेगा हमारा समाज को मूल जो ये विधवा रमणियां, जो हमारे अत्याचारों से घबरा कर विधर्मियों के घर बसाने को बाधित
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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