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________________ ( २५ ) उत्तर-पत्नी बनने के पहिले कोई विधवा नहीं हो सकती। इस लिये यह दृढ़ता से कहा जा सकता है कि जिन बालिकाओं को लोग विधवा कहते हैं वे विधवा नहीं हैं क्योंकि बाल्यावस्था का विवाह उपर्यन दो बातो के न होने से विवाह ही नहीं है। जिसका विवाह ही नहीं उसमें न तो पत्नीपन आ सकता है न विधवापन । वून ग्रहण करने में बनी के भावों की ज़रूरत है-भाव के बिना क्रिया किसी काम की नहीं । शास्त्रकार तो कहते है--'यम्माक्रियाः प्रतिफलन्ति न भावशन्याः' अर्थात् भावरहित क्रियाओं का कुछ फल नहीं होता । अर्थात् भावशन्य क्रियायों के द्वारा शुभाशुभ बंध और संवर आदि नहीं होते। जो लोग यह कहते हैं कि 'अनेक संस्कार बाल्यावस्था में ही कराये जाते हैं इस लिये भावों के बिना भी व्रत कहलाया' वे लोग व्रत और संस्कार का अन्तर नहीं समझते। व्रत का लक्षण स्वामी समन्तभद्राचार्य ने यह लिखा है : अभिसन्धिकृता विरतिः विषयाद्योगाव्रतं भवति । अर्थात्--योग्य विषय से अभिप्राय (भाव) पूर्वक विरक्त होना व्रत कहलाता है। वाहादृष्टि से त्यागी हो जाने पर भी जब तक अभिप्राय पूर्वक त्याग नहीं होता तब तक चूत नहीं कहलाता है। संस्कार कोई वत नहीं है, परन्तु वूती बनने को योग्यता प्राप्त करने का एक उपाय है । वृत पाठ वर्ष की उमर के पहिले नहीं हो सकता, परंतु संस्कार तो गर्भावस्था से ही होने लगते हैं। संस्कार से योग्यता पैदा हो सकती है ( योग्यता का होना अवश्यम्भावी नहीं है) लेकिन व्रत तो योग्यता पैदा होने के बाद इसके उपयोग होने पर
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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