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________________ सार नियत विधि नहीं होती, फिर भी वह विवाह है और उस विवाह से उत्पन्न संतान मोक्षगामी तक होती है। इसी विवाह से रुक्मणीजी कृष्णजी की पटगनी बनी थीं और उनसे तद्भव मोक्षगामी प्रद्युम्न पैदा हुए थे। इसलिये शास्त्रानुसार विधि हो या न हो, परन्तु जहाँ पर उपयुक्त दो बातें होगी वहाँ पर धर्मानुकूलता है और उनके बिना धर्मविरुद्धना है। प्रश्न (१३)-विधवा होने के पहिले जिन्होंने पन्नीन्य का अनुभव नहीं किया, उन्हें विधवा कहना कहाँ तक उचित है ? उत्तर--१२ में प्रश्न के उत्तर में इसका भी उत्तर श्रा सकता है। वहाँ कही हुई दो बातों के बिना जो विवाहनाटक होजाता है उसके द्वारा उन दोनों बच्चों को पति पत्नीत्व का अनुभव नहीं होता। वे नाटकीय पति पनि कहलाते हैं । ऐसी हालत में अगर वह नाटकीय पनि मरजाय तो वह नाटकीय पत्नी नाटकीयविधवा कहलायेगी । पन्नीत्व के व्यवहार और पन्नीत्व के अनुभव में बहुत अन्तर है। व्यवहार के लिये तो चारों निक्षेप उपयोगी हो सकते हैं, परन्तु अनुभव के लिये सिर्फ भावनिक्षप ही उपयोगी है। बालविवाह के पति-पत्नी व्यवहार में स्थापना निक्ष पसे काम लिया जाता है। जो लोग उसे भाव निक्षप समझ जाते हैं अथवा व्यवहार और अनुभव के अन्तर को नहीं समझते, उनकी विद्वत्ता (?) दयनीय हैं। प्रश्न (१४)-क्या पत्नी बनने के पहिले भी कोई विधवा हो सकती है ? और पत्नी बनकर व्रत ग्रहण करने में वती के भावो की ज़रूरत है या नहीं?
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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