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________________ ( १७० ) हो पड़ेगा। अगर इनमें में कोई विवाहित हो जायगा तो इसके बदले में किमी दमा को अविवाहित रहना पड़ेगा। धन से लड़कियाँ मिल सकती है परन्तु धन स लडकियाँ बन तो नहीं मकती । मनिये जब तक विधवाविवाह की सुप्रथा का प्रचार नहीं होता नयनक यह समम्या हल नहीं हो सकती। आक्षेप ( क )- अविवाहित रहने का कारण ना हमने कर्मोदय समझ रखा है। यह ( बलाधव्य ) नया कारण तो आपने बय ही निकाला। ( विद्यानन्द ) ममाधान-मोदय ता अन्न कारण है और वह तापस हर एक कार्य का निमित्त है। परन्त यहाँ ना बाह्य कारणों पर विचार करना है। विधवाविवाह का प्रचार भी अपन अपने कर्मोदय के कारण है फिर पाप लाग ज्या उम वरोध में हा हल्ला मचाते है ? चागे करना, स्वन करना, बला. कार करना आदि अनक अभ्याग और अन्याचाग का निमित्त मोदय है फिर शासनव्यवस्था की क्या आवश्यकता ? कर्मो. दय म बीमाग हुआ करती है फिर चिकित्मा और संवा की कुछ ज़रूरत है कि नहीं? कर्मोदय म लक्ष्मी मिलती हे किर व्यापागद की आवश्यकता है कि नहीं? मनुष्यगव देव की गुलामी के लिये नहीं है प्रयत्न के लिये है। इसलिये भले ही म अपना शनि प्राजमाव परन्त हमें ना अपने प्रयत्न स काम लेना चाहिये। 'विधवाविवाह कर लेने पर भी कोई विवाहित न कह. না কি নিথৰাবিৰাহু ম নিন্যা স্কা দ্য না আসা इसका उत्तर हम दे चुके है, और विधवाविवाह को विवाह सिद्ध कर चुके है।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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