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________________ ( १४६) विधि का उपयोग करना न करना इच्छा के ऊपर निर्भर है। किसी एक नगर मे दुमरे नगर को यात्रा करने के लिये रेलगाड़ी चलती है । इस तरह यात्रियों के लिये रेलगाड़ी नियत करदी गई है परन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि वहाँ मोटर से, घोड़ स या अपने पैरोम यात्रा नहीं हो सकनी। रेलगाड़ी की यात्रा के साधनों में मुख्यता भले ही देदी जाय परन्तु उस अनिवार्य नहीं कह सकते। इसी तरह नियत शास्त्रविधिको भले ही कोई मुख्य समझे परन्तु अनिवार्य नहीं कह सकते । अनिवार्य तो चारित्रमोह श्रादि हो है । रेलगाड़ी के अभाव में यात्रा के समान विवाह विधि के अभाव में भी विवाह हो सकता है। आक्षप ( )-प्रद्युम्न को गांधर्व विवाह से पैदा हुआ कहना धृष्टता है। गांधविवाह जान हे कर्ण, इम से वे नाजा. यज है। ___ममाधान-कर्ण के विषय में हम पहिले लिख चुके हैं और इस प्रश्न के आक्षप'छ' के समाधानमें भी लिख चुके हे । कर्ण व्यभिचार जात हे गांधर्व विवाहोत्पन्न नही। रुक्मिणी का अगर गांधर्वविवाह नही था तो बतलाना चाहिये कि कौन मा विवाह था। प्रारम्भ क चार विवाहों में श्राप लोग कन्या. दान मानते हे। रेवतकगिरि के ऊपर कन्यादान किसने किया था ? वहाँ तो रुकमणो, कृष्ण और बलदेव के सिवाय और कोई नही था। गांधर्व विवाह में "स्वच्छया अन्यान्य सम्बन्ध" होता है । रुक्मणी ने भी माता पिता आदि की इच्छा के विरुद्ध अपनी इच्छा से सम्बन्ध किया था। गांधर्व विवाह व्यभिचार नहीं है जिससे प्रद्यम्न व्यभिचारजात कहला सके। यहाँ पर आक्ष पक अपने साथी प्रापक के साथ भी भिड़ गया है। विद्यानन्द कहते हैं--गांधर्व विवाह, विवाहविधि
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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