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________________ ( १७२ ) कल सिद्ध हांग उमो अपेक्षा से ग्राहा है। बाकी अपेक्षानों से अनाहा । प्रत्येक पदार्थ के साथ समभंगी लगाई जासकती हैं। अगर नास्तिभंग लगाते समय कोई कह कि प्रत्येक पदार्थ को यदि नास्तिरूप कहांगे तो अस्तिरूप किम कहांगे? तब इसका उत्तर यही हागा कि अपेक्षान्तर में यही पदार्थ अम्निरूप भी होगा । इसी प्रकार एक कार्य किमी अपेक्षा सं ग्राहा, किसी अपेक्षा में अग्राह्य है। जो लोग पूर्णब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर मकने उनको विधवाविवाह ग्राह्य हैं । पूर्ण ब्रह्मचारियों को अग्राहा । बारहवाँ प्रश्न "छोटे छोटे दुधम् है बच्चों का विवाह धर्मविरुद्ध है या नहीं" ? इस प्रश्न के उत्तर में हमने ऐसे विवाह को धर्मविरुद्ध कहा था, क्योकि उन में विवाह का लनगा नहीं जाना । जब वह विवाह ही नहीं तो उसने पँदा दुई सन्तान का के ममान नाजायज़ कहलाई । इसलिये ऐसे नाममात्र के विवाह के हो जाने पर भी वास्तविक विवाह की आवश्यकता है। आक्षेप (क)-मद्रयाहुहितामें लिखा है कि कन्या १२ की और वर सोलह वर्ष का होना चाहिये । इससे कम और अधिक विकार है । ( श्रीलाल) समाधान-भद्रयाहु नकवली थे । दिगम्बर सम्प्र. दाय में उनका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ नहीं है । उनके दो हज़ार वर्ष बाद एक अज्ञानी धूत ने उनके नाम से एक जाली ग्रन्थ बनाया और उसपर भद्रबाहु की छाप लगादी । खैर, पुराणों में शायद ही कोई विवाह १२ वर्ष की उम्र में किया हुआ मिलेगा। धर्मशास्त्र तो यह कहता है कि जितनी अधिक उमर नक ब्रह्मचर्य रहे उतना ही अच्छा । दूसरी बात यह है कि ठीक
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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