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________________ 28 / जैन धर्म और दर्शन आधार पर भी होता है। वैदिक साहित्य में सर्वाधिक प्राचीन ऋग्वेद में अनेक स्थलों पर ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है, साथ ही उसमें जिन वातरसना केशी आदि मुनियों का उल्लेख मिलता है। विद्वज्जनों ने उनका संबंध भी जैन मुनियों से ही माना है। ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में प्रयुक्त 'अर्हन्' शब्द भी जैन संस्कृति के पुरातन होने का परिचय देता है। वैदिक साहित्य में ऋषभदेव पाठकों की सुविधा के लिए विद्वानों के लेखों के आधार पर यहां कुछ वैदिक ऋचाओं/मंत्रों को उद्धृत करते हैं जिनसे जैन संस्कृति का परिचय मिलता है। ऋग्वेद में एक स्थान पर ऋषभदेव को ज्ञान का आगार तथा दुखों व शत्रुओं का विध्वंसक बताते हुए कहा गया है कि असूतपूर्वा वृषभो ज्यायनिभा, अस्य शुरुषः संतिपूर्वीः । दिवो न पाता विथस्थीभिः क्षत्रं राजाना प्रतिवोदधाथे ॥1 अर्थात् जिस प्रकार जल से भरा हुआ मेष वर्षा का मुख्य स्त्रोत है और पृथ्वी की प्यास बुझा देता है उसी प्रकार पूर्वी अर्थात् ज्ञान के प्रतिपादक ऋषभ महान हैं, उनका शासन वर दे। उनके शासन में ऋषि परंपरा से प्राप्त पूर्व का ज्ञान आत्मा के क्रोधादि शत्रुओं का विध्वंसक हो । दोनों (संसारी और सिद्ध) आत्माएं अपने ही आत्म गुणों से चमकती हैं। अतः वही राजा हैं,वे पूर्व ज्ञान के आगार हैं और आत्म पतन नहीं होने देते। ऋषभदेव का प्रमुख सिद्धांत था—आत्मा में ही परमात्मा का अधिष्ठान है । उसे प्राप्त करने का उपाय करो। इसी सिद्धांत की पुष्टि करते हुए वेदों में उनका नामोल्लेख पूर्वक कहा गया है त्रिधावद्धो वृषभो रोरवीति महादेवो मानाविवेश अर्थात् मन, वचन, काय से बद्ध (संयत) ऋषभदेव ने घोषणा की-महादेव मत्यों में निवास करता है। उन्होंने अपनी साधना व तपस्या से मनुष्य शरीर में रहते हुए उसे प्रमाणित भी कर दिखाया था। ऐसा उल्लेख भी वेदों में है तनमर्त्यस्य देवत्वमजानमने ऋग्वेद 39/17 ऋषभ स्वयं आदि पुरुष थे। जिन्होंने सबसे पहले मर्त्यदशा में देवत्व प्राप्त की थी।' वातरसना श्रमण/केशी और भगवान ऋषभदेव ऋग्वेद में जो वातरसना मुनियों और श्रमणों की साधना का चित्रण मिलता है, उसका संबंध जैन मुनियों से ही है 1. ऋषभ सौरभ पृ. 14 पर उद्धत । 2. ऋग्रम सौरभ पृ. 14 पर उड़त । 3. ऋषभ सौरमपु. 14 पर उत। 4. ऋषभ सौरभ पु. 14
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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