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________________ श्रावकाचार | 223 आहार वारणा/अन्नपान-निरोध-दुर्भावनावश अपने आश्रितों के अन्नपान का निरोध करना, उन्हें जानबूझकर भूखा रखना,समय पर उनके लिए भोजन-पानी की व्यवस्था न करना आहार वारणा है,इसे अन्नपान निरोध भी कहते हैं। सत्याणुव्रत अहिंसा की आराधना के लिए सत्य की उपासना भी अनिवार्य है। झूठा व्यक्ति सही अर्थों में अहिंसक आचरण कर ही नहीं सकता तथा सच्चा अहिसक कभी असत्य आचरण नहीं कर सकता। सत्य और अहिंसा में इतना घनिष्ट संबंध है कि एक के अभाव में दूसरे की आराधना हो ही नहीं सकती। ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। गृहस्थ के लिए झूठ का सर्वथा त्याग संभव नही है। इसलिए उसे स्थूल झूठ का ही त्याग कराया जाता है। जिस झूठ से समाज में प्रतिष्ठा न रहे, प्रामाणिकता खडित होती हो लोगों में अविश्वास उत्पन्न होता हो तथा राजदंड का भागी बनना पड़े, इस प्रकार के झूठ को स्थूल झूठ कहते हैं। सत्याणुव्रती श्रावक इस प्रकार के स्थूल झूठ का मन, वचन, काय से सर्वथा त्याग करता है, साथ ही वह कभी ऐसा मत्य भी नही बोलता जिससे किसी पर आपत्ति आती हो। वह तो अपनी अहिंसक भावना की मरक्षा के लिए हित-मित और प्रिय वचनों का ही प्रयोग करता है। अतिचार सत्याणुव्रत के पांच अतिचार हैं—परिवाद, रहोभ्याख्यान, कूटलेख क्रिया, न्यासपहार और पैशुन्य। 1. किसी की निंदा करना अथवा किमी के साथ गाली-गलौच करना परिवाद है। 2. दूसरों के गुप्त रहस्यों को उजागर कर देना रहाभ्याख्यान है 3. झूठे दस्तावेज तैयार करना, झूठे लेख लिखना, झूठी गवाही देना, किमी के जाली हस्ताक्षर बनाना अथवा झूठा अंगूठा लगाना, किमी पर झूठे आरोप लगाना यह सब कूटलेख क्रिया है। 4. चुगली करना पैशुन्य है। 5. दूसरों की धरोहर को हड़प लेना न्यामापहार है। भवन- भूमि आदि का अवैध कब्जा भी इसी के अंतर्गत आता है। अचायाणुव्रत चोरी भी हिंसा का ही रूप है। अहिसा के सम्यक परिपालन के लिए चोरी का त्याग भी आवश्यक है। जब किसी की कोई चीज चोरी हो जाती है अथवा वह किसी प्रकार से ठगा जाता है तो उसे बहुत मानसिक पीड़ा होती है, उस मानसिक पीड़ा के परिणामस्वरूप 1. रक श्रा 55 2. रक.श्रा 56
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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