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________________ जैन-शिष्टाचार २४९ मवत्सरी-पyषण पर्व, दशलक्षणीपर्व, सायम्बिलअष्टान्हिका, श्रुतपचमी, श्रादि तो धार्मिक पर्व है। महावीर जयती, वीर गासन जयन्ती, दीपावली, सलूनो ( रक्षाववन) श्रादि सामाजिक पर्व है। संवत्सरी-वेताम्बर सम्प्रदाय मे सम्वत्सरी पर्दूपणपर्व को पर्वाधिराज कहा जाता है। जैन शास्त्रो मे पर्युपण के दिनो मे से आठवे दिन सवत्सरी को धर्म का गर्वोच्च पवित्र दिन माना गया है। श्रमण सुधर्मा कहते है कि हे जम्बू ।' इन पर्व को श्रमण भगवान् महावीर ने आषाढ पूर्णिमा से १ मास २० दिन के बाद मनाया था। चातुर्मास मे एक मास और २०वे दिन अर्थात् भाद्रपद शुक्ला ५ को गवत्नरी पर्व आता है। प्रात्म गुद्धि के इस महान पर्व को जैसे भगवान् मनाते है उसी प्रकार गौतम स्वामी, उमी प्रकार आचार्य, उपाध्याय तथा श्रीसघ मनाता है। सम्वत्सरी की गत का किसी भी प्रकार से उल्लघन नहीं करना चाहिए। समवायाग सूत्र मे सवत्सरी का समय निश्चित करते हुए यह भी बताया है कि चातुर्मास के ५० दिन बाद और ७० दिन गेप रहते सवत्सरी पर्व की याराधना करनी चाहिए। ___सवत्मरी के अाठ दिवमो को पर्दूपण कहते है। सम्वत्मरी और पर्यंपण दोनो में केवल इतना ही अन्तर है, कि सवत्मरी प्राध्यात्मिक साधना-क्रम मे बर्ष का अन्तिम और सर्वप्रथम दिन का बोधक है, और पर्युपण शब्द तप और वैराग्य साधना का उद्बोधक है। अत. मवसत्सरी का अर्थ है, वर्ष का प्रारभ और पर्युषण का अर्थ है कपाय की गान्ति । आत्मनिवास तथा वैराग्यवृत्ति । पपण के अर्थ को प्रकट करने वाले प्रागमो मे कितने ही शब्द उपलब्ध होते है, जैसे कि पज्जमणा, पज्जोमवणा, पज्जुसणा, आदि। पर्दूपण का शाब्दिक अर्थ है, पूर्ण रूप से निवास करना, अात्मरमण करना और पज्जोमवणा का अर्थ है, कषायो की सर्वथा उपशान्ति । अनादिकालीन प्रात्मा मे स्थित विकारो का सर्वथा नाग करना, तथा ऊर्ध्वमुखी वृत्ति द्वारा ऊर्ध्वगमन करना ही पज्जोसवणा का वास्तविक अर्थ है। जैन साधु और साध्वी, इन आठ दिनो मे १. कल्पसूत्र, 'तेण कालेणं-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवो सइराए मासे विइक्कन्ते वासावासं पज्जोसवेई ।" २. समवायाग सूत्र, “समणे भगवं महावीरे वासाण सवीसई राइमाते वइक्कन्ते सत्तरिाह राइदिएहि सेसेहि वासावासं पज्जोसवेई।"
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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