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________________ मनोविज्ञान ८. चाण्डिक्य- रौद्र रूप धारण करना । ६. भंडन - पीटने - मारने पर उतारू हो जाना | १०. विवाद - ग्राक्षेपात्मक भाषण करना । यह क्रोध की विभिन्न अवस्थाए है जो उत्तेजन एव प्रवेश के कारण उत्पन्न होकर भयकरता उत्पन्न करती है । ( भगवती सूत्र, शतक १२, उ० ५, पा० २ 1 ) २. अभिमान - कुल, बल, ऐश्वर्य, बुद्धि, जाति, ज्ञान आदि किसी विशेषता का घमंड करना मान है । मनुष्य मे स्वाभिमान की मूल प्रवृत्ति है ही, परन्तु जब उसमे उचित से अधिक शासित करने की भूख जागृत होती है, और जब अपने गुणो एव योग्यतात्रो को परखने में वह भूल कर जाता है, तब उसके अन्तःकरण मे मान की वृत्ति का प्रादुर्भाव होता है । १२७ अभिमान में भी उत्तेजन और ग्रावेग होता है, किन्तु अभिमानी मनुष्य अपनी अहंवृत्ति का पोषण करता है । उसे ग्रुपने से बढकर या अपनी बराबरी का गुणी कोर्ड दीखता नही । भगवान् महावीर ने मान के बारह नाम बतलाये है१. मान - अपने किसी गुण पर झूठी ग्रहवृत्ति | २. भद-ग्रहभाव में तन्मयता । ३. दर्प-उत्तेजनापूर्ण ग्रहभाव । ४. स्तम्भ - प्रविनम्रता । ५. गर्व-अहकार । ६ प्रत्युत्कोश - अपने को दूसरो से श्रेष्ठ कहना । ७ परपरिवाद - परनिन्दा | ८. उत्कर्ष - ग्रपना ऐश्वर्य प्रकट करना । ९. ग्रपकर्ष - दूसरो की हीनता प्रकट करना । १० उन्नत - दूसरो को तुच्छ समझना । ११ उन्नतनाम - गुणी के सामने भी न झुकना | १२. दुर्नाम - यथोचित रूप से न झुकना । यह सब मान की विभिन्न अवस्थाए हैं । - भगवती, ग० १२, उ०५, पाठ ३ । ३ माया -- कपटाचार माया कषाय है। शास्त्र में इसके पन्द्रह नाम गिनाये है, जो इस प्रकार है- १. माया - कपटाचार |
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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