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________________ ( ७० ) . पर उपयोग शब्द द्वारा सर्व सुन्दर स्पष्टग्राह्य सिद्धांत पद्धति का बोध कराने वाले महावीर ही थे। वास्तव में चेतन व जड़ में यहीं पार्थक्य है-जड़ इस उपयोग को कभी कहीं नहीं पा सका है। युक्तयाश्रयी विज्ञान के सन्मुख भारतीय दर्शनों का यही उद्घोष है कि चेतन व जड़ को एक मान कर अथवा जड़ को सूक्ष्म स्थिति में चेतन स्वरूप "शक्ति" का अंश मानकर वे जो भाव-अनुभव-उपयोगादि चेतन गुणों का सर्वथा "निराकरण करने का मत हैं, यह उचित नहीं, किन्तु यह धारणा तद्विषयक अल्प बोध के कारण भ्रांतिपूर्ण है। पाश्चात्य धर्मों की धारणा में कभी विचार की सूक्ष्म बातें आयी ही न थीं यह उनके सामान्य कोटि के प्रवचनों से ही स्पष्ट हो जाता है । सामान्य कोटि की नैतिक धाराओं के अतिरिक्त उनके धार्मिक साहित्य में और कोई बुद्धि विकाश दृष्टिगोचर नहीं होता । अतः उनको न तो कोई बात समझानी है न कुछ सुनना है - वे चेतन व जड़ की परिभाषाओं को भी नहीं समझते। पर, विज्ञान से हमारा सानुनय अनुरोध है कि भौतिक विकास के साथ साथ भाव विकास के क्षेत्र में भी पदार्पण करें तथा भावानुसंधानों से उपलब्ध होने वाली अद्भुत, अनोखी. अविनश्वर सी विभूतियों को भी इस काल के लिये मानव सुलभ बनालें । भारतीय भाव वैज्ञानिकों ने यह कार्य अपने समय में विशिष्टता के साथ सम्पादित किया था, यह प्रमाणित है । आज जिनका समय है वे भौतिक निर्माण या ध्वंश तक ही विकास क्रम
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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