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________________ (८ ) सचमुच जाति भेद को अस्वीकार करने का सबसे ठोस प्रयास था यह । तत्कालीन क्रिया कांड प्रधान धर्मों के प्रचारकों ने जाति के इस पूर्वमान्य परिवर्तन को अत्यन्त दुरलंघनीय बना दिया था एवं समाज में क्रमशः एक दूसरे का शोषण करने की वृत्ति बढ़ चली थी महावीर आये इसको नष्ट करने। जैन अनुश्रुति के अनुसार जैनों ने किसी निकट के प्राग्ऐतिहासिक युग में वेदों के अर्थ विद्रुपीकरण के कारण व्यवहारिक जीवन में आयी हुई हिंसात्मक वृत्तियों से संबंध विच्छेद कर लिया था किंतु वेदों को कभी सर्वथा अस्वीकृत नहीं किया 1 भारतीय संस्कृति के अन्य अंगों के साथ जैन अंग के पारस्परिक संबंध के विषय में इतना कुछ कहने का प्रसङ्ग इसीलिये आया है कि इस ओर की भूल भरी धारणाओं के कारण आपसी मतभेद अत्यन्त कठोर हो गया है एवं जिसका दूरीकरण भाज अत्यन्त अपेक्षित है। जैनों में जातिगत संकीर्णता आने का कारण है उन में निजी जाति भावना के विष का प्रचार - आज के जैन स्वयं अपने आपको एक पृथक जाति मानने लग गये है और जो धर्म सब जातियों के लिये खुला था उसे आज वे अपनी पूँजी समझते हैं। उनकी यह भ्रांत धारणा उनके पतन का पसर्वोपरि कारण है । महावीर ने अयुक्त व्यवहारिक भेद भावनाओं को कभी स्थान नहीं दिया । उनके पास ब्राह्मण और शूद्र समान भाव से श्राते एवं अपनी शंकाओं व उद्भ्रांतियों का निराकरण करते ।
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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