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________________ तत्व चिंता का प्रयोग क्रिया से कम महत्व नहीं रखता बल्कि अनंत गुणा वैशिष्ट्य होताहै उसमें । तत्वचिंता प्राण है ज्ञान का, तो उपयोग काया है उसकी-कलेवर (काया) की तुलना में चेतन ( प्राण ) का क्या महत्व है यह सामान्य बुद्धि वाला भी समझ सकताहै । विचारक वैज्ञानिक आइन्स्टाइन तत्वचिंतक है । प्रयोग क्षेत्र में उनकी पहुंच व रुचि विशेष नहीं ।।किंतु तत्व की शोध का श्रेय जितना उनको है उतना क्या और किसी प्रयोग-कुशल को दिया जा सकता है ? शून्य में से सत्य को खोज निकालना कितने लोग कर पाते हैं ? समस्त मानव जाति के इतिवृत्त में इनेगिने महानुभाव ही तो ऐसा कर पाये हैं। हाँ, इतना हम मानते हैं कि प्रयोग न किये जाने पर ज्ञान की शोध समाज की उन्नति के काम नहीं आती और यों ही व्यर्थ जाता है यह प्रयास संस्कृति व विकास की दृष्टि से अंप्रयुक्त तत्व-ज्ञान व्यक्ति तकही । सीमित रह जाता है और उसके प्रसार का प्रसंग नहीं आता, न मानवता आगे बढ़ती है। इसलिये जिन महानुभावों ने तत्वके स्वरूप को समझ कर समझाया, उनको हम अपने व्यहार के लिये अधिक महत्व देते हैं। सत्य को अपने तक ही सीमित रखने वालों की अपेक्षा प्रचारक विज्ञ मानवता के बड़े उपकारक होते हैं। स्व के लिये तो तत्व बोध का महत्व उतना ही रहता है पर अप्रचारित तत्त्वज्ञान से उपकार नहीं होता और उपकार का मूल्य बहुत बड़ा है । महावीर प्रचारक कोटि के तत्वचिंतक थे एवं उनके प्रचार के फल स्वरूप तत्वचिंता की जा धारा बह निकली उसी का
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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