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________________ जीववाद ७१ पंचभूत शरीरका आकार धारण करते हैं उस वक्त ही उसमें चैतन्य पैदा होता है, क्योंकि जहाँपर शरीर होता है, वहीं पर चैतन्यका भी अस्तित्व मालूम देता है, इस प्रकारकी दलीलसे शरीर और चैतन्यका विशेष सम्वन्ध जाना जा सकता है। परन्तु विचार करनेसे यह दलील भी असत्य ही मालूम देती है, क्योंकि मुर्देके शरीरमें चैतन्य सालम नहीं देता । जहाँ शरीर हो यदि वहीं चैतन्य रहता होतो इस मृत शरीरमें भीमालूम होना चाहिये । यदि इस दूषणको दूर करनेके लिये आप यह कहें कि मृत शरीरमें पंचभूतके समुदायमैले वायु नहीं है इस लिये हमारा पूर्वोक्त नियम असत्य नहीं ठहर सकता, तो नास्तिकोंकी यह दलील भी यथार्थ नहीं है, क्योंकि मुर्देके शरीरमें खोकलापन होनेसे और वह प्रत्यक्षमें ही फूलता हुआ मालूम होनेसे उसमें वायु नहीं ऐसा कौन कह सकता है ? । तथा मुर्देके शरीरमें चमड़ेकी धमनीके द्वारा भी वायु भरी जा सकती है, इस रीतिसे भी उसमें कम रहे हुये वायुतत्वको पूर्ण किया जा सकता है । यदि फक्त एक वायु न होनेसे मुमे चैतन्यका अभाव होता हो तो उसमें वायु आनेसे चैतन्य आना चाहिये और इससे सुर्देके शरीरको भी जीवित शरीरके समान ही क्रिया करनी चाहिये । किन्तु इस प्रकारका वनाच आजतक कहीं पर भी किसीने नहीं देखा और ना ही यह बात कहीं सुननेसे आई । अतः मृतक शरीरमें घायु न होनेसे ही उसमें चनन्य नहीं यह कहना सरासर असत्य है यदि आप यों कहे कि मानवायु भरनेसे ही मुर्देके शरीरमै चैतन्य नहीं आता इसका दूसरा भी कारण है और वह कारण यह है जवतक मुर्देके शरीरमें प्राणवायु और अपानवायुका संचार न हो तवतक उसमें एकला वायु भरनेसे चैतन्य नहीं आ सकता। अर्थात् मुर्देके शरीरमै चैतन्य मालूम न होनेका कारण उसमें प्राणवायु और अपानवायुका अभाव ही है। आपकी यह दलील भी विलकुल खोकली ही है, क्योंकि ऐसा कोई नियम नहीं कि जहाँपर प्राणवायु और अपान वायु हो वहीं पर चैतन्य होता हो और जहाँपर ये दोनों वायु न हो वहाँ पर चैतन्य भी न हो । यदि
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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