SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वज्ञवाद बन सकता हो । इससे यदि आपके वेदाको प्रामाणिक ठहराना हो तो आपको सर्वश माननेकी अत्यावश्यकता है । क्योंकि सर्वसके किये हुये शान सदैव प्रामाणिक ही माने जाते हैं, माने गये हैं और माने जायेंगे। इस तरह एक भी प्रमाण सर्वज्ञके अस्तित्वमें हरकत नहीं पहुंचा सकता । इस लिये प्रामाणिकतासे आपको सर्वशका स्वीकार अवश्य करना चाहिये । अव हम आपके प्रथम किये हुये सवालोका जवाब देते हैं। आपने यह सवाल किया था कि सर्वदा सारे संसारको किस तरह जान सकता है ? जवाब---उस सर्वशको संपूर्ण रीत्या केवलशान और केवलदर्शन प्रगट हुआ है अतः उस अनन्त वस्तुविपयक केवल शान और केवल दर्शन द्वारा ही वह अखिल संसारको जानता और देखता है। उसे कोई वस्तु जाननेके लिये इंद्रियोंकी भावश्यकता नहीं पड़ती। २ आपने सर्वशको अशुचि पदार्थोके रसको चाखनेकी जो वात कही थी उसके बारेमें खुलासा इस प्रकार है। ___ उ० वह सर्वश आपके समान किसी भी वस्तुका रस चाखनेके लिये रसना इंद्रिय-जीभका उपयोग नहीं करता। वह उसके केवलज्ञान द्वारा ही वस्तु और उसके गुणदोषोको जान सकता है, अतः आपका पूर्वोक्त कथन ठीक नहीं. ३ आपने फरमाया था कि संसार अनन्त है, उसमें रही हुई वस्तुये भी अनन्त हैं तो फिर एक एक वस्तुको क्रमसे जानता हुआ वह किस तरह और कव उन तमाम वस्तुओको जानकर सर्वश हो सकेगा? ७० जिस प्रकार एक पढ़े हुये मनुष्यको उसका सव कुछ पढ़ा हुआ एक साथ ही भासित होता है उसी प्रकार उस सर्वज्ञको भी उसके केवल शान द्वारा विश्वके समस्त स्थिर अस्थिर पदाथोंका जानपन एक साथ ही होता है । कैवल्य प्राप्त होने पर उसे शमसे एक एक वस्तु जाननेकी जरुरत नहीं रहती। ४. आपने जो यह फरमाया था कि भूतकालीन वस्तुको भूत
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy