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________________ ईश्वरवाद २७ किसीके देखने में ही न आवे । यदि ईश्वर अपने किसी प्रभाविक चमत्कारके लिये रोज न देख पड़ता हो तथापि यदि वह कर्ता तरीके हो तो कभी किसी वक्त तो किसी न किसी को अवश्य दीखना चाहिये। परन्तु आश्चर्य इस बातका है कि वह कभी भी किसीको दृष्टिगोचर नहीं होता । इस लिये ऐसा किस तरह माना जाय कि वह अपने किसी प्रभाविक चमत्कारके कारण नहीं देख पड़ता। कर्तृवादी-खैर यदि आपको यह मंजूर नहीं तो जाने दो, हम यह मानते हैं कि ईश्वरमें ऐसी कोई एक जातिविशेषता है कि जिसके कारण वह हमारी दृष्टिमें नहीं आसकता और गुप्त रहकर ही जगतकी रचना करता है। अकर्तृवादी-ठीक है यह आपका कथन प्रापको ही हानिकारक होगा। हमारी समझ मुजव श्राप जातिविशेषका अर्थ भूल गये मालूम देते हैं। आपने ही फरमाया है कि जो जास्ती वस्तुओंमें रहे उसका नाम जातिविशेष है । आप तो ईश्वरको एक ही मानते हैं और उसके समान अन्य किसी चीजको नहीं मानते तो फिर बहुत चीजोंमें रहनेवाला जातिविशेष एकले ईश्वरमें किस प्रकार रह सकता है ? इस लिये ईश्वर में इस प्रकारका कोई जातिविशेप हो ही नहीं सकता कि जिससे वह किसीके भी देखने में ही न आवे । खैर यदि कुछ देरके लिये आपके कथानुसार ईश्वरको जगतका का मान लिया जाय तो उसमें अन्यभी कई प्रश्न उपस्थित होते हैं। जैसे कि यदि वह सचमुच जगतको रचता ही हो तो क्या जगत उसके अस्तित्व मात्रसे ही रचा जाता है ? या उसके ज्ञानीपनके कारण रचा जाता है ? अथवा उसमें ज्ञान, इच्छा प्रयत्नहै उनके ही द्वारा रचा जाता है किंवा ईश्वर अपने ज्ञान, इच्छा प्रयत्न द्वारा स्वयं क्रिया करता है और उससे जगत रचा जाता है ? या सिर्फ उसके ईश्वरत्वके लिये ही जगतकी रचना होती है ? कर्तृवादी- इस विपयमें हम आपको विशेष क्या कहें, हम तो ईश्वरके ऐसे उपासक हैं कि हमारी मान्यताके अनुसार ईश्वरके अस्तित्व मात्रसे ही जगतकी रचना हो जाती है।
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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