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________________ ईश्वरवाद उन्हें देवतया न मानना चाहिये यह बात स्वीकार करने योग्य है, किन्तु जो ईश्वर कदापि अवतार धारण नहीं करता और सृष्टि का निर्माण तथा उसका पालन किया करता है उसे श्राप देवतया नहीं मानते इसका क्या कारण ? अर्थात् देवका स्वरूप कथन करते हुये उसे कर्त्ता और पालक आदि क्यों नहीं स्वीकारते ? कर्तृवादी-ईश्वर कदापि जन्म धारण नहीं करता तो फिर मोक्षसे श्राकर जगतको निर्माण करने एवं उसके पालनेकी कंट में वह किस तरह पढ़ सकता है ? वास्तवमें विचार किया जाय तो ईश्वरत्व प्राप्त किये बाद उसे कोई भी कार्य करनेका बाकी ही नहीं रहता, इस लिये उस पर जगतकर्त्ता एवं पालकपनका आरोप अघटित और अनुचित मालूम होता है । दूसरे यह भी बात है कि ईश्वरी प्रवृत्ति साक्षात् दृष्टिगोचर न होनेके कारण उसे कर्त्ता या पालक माननेकी बात किसी भी प्रवल प्रमाण विना नहीं मानी जा सकती । इसी कारण हम जगतको निर्माण करनेबाले या जगतका पालन करनेवाले ईश्वरको देवतया मानते हुये हिचकिचाते हैं । कर्तृवादी - हम ईश्वरके कर्तृत्व और पानकपनको साबित करनेवाला प्रमाण देते हैं, आप लक्षपूर्वक सुने - हम हमेशह अनेक वस्तुको देखते हैं और उनका उपयोग भी करते हैं । जैसे कि कागज, लेखनी, दवात, छत्री, जूते, कपड़े और मकान वगैरह । यद्यपि इन पूर्वोक्त वस्तुओंके वनानेवालेको हमने अपनी आंखोंसे नहीं देखा तथापि उसकी बनावट देखते ही बनानेवालेका ज्ञान होजाता है । अर्थात् उन वस्तुओंके देखते ही हृदयमें यह कल्पना होती है कि इनका बनानेवाला कोई न कोई श्रवश्य होना चाहिये और साथ ही हमे यह ज्ञान होजाता है कि बनानेवालेके सिवाय कोई भी वस्तु बन नहीं सकती। जब एक लेखनी जैसी तुच्छ वस्तू भी किसी बनानेवाले विना नहीं बन सकती तो फिर यह अदभुत विचित्र और सुन्दरता पूर्ण पृथ्वी, पानी, पवन, वन, पर्वत तथा अग्नि वगैरह विना किसीके बनाये किस तरह वन सकते हैं ? यद्यपि इन तमाम वस्तुओं के बनाने वालेको हम चर्म-.
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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