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________________ प्रमाणवाद १७३ और इससे अलावा अन्य सव ही उसके परपर्याय हैं। इस प्रकार द्रव्यकी अपेक्षासे फक्त एक घटके ही स्वपर्याय बहुत कम और परपर्याय अनन्त हैं। इस तरह एक द्रव्यकी ही अपेक्षाले घटकी विचारणा की गई है। अव क्षेत्रकी अपेक्षासे घटकी विचारणा इस प्रकार की जाती है क्षेत्रकी अपेक्षासे देखनेसे घड़ा तीनों लोको वर्तता है याने तीनों लोकमें वर्तनत्व उस घटका निजी पर्याय है और उस पर्यायका अन्य कोई परपर्याय नहीं होता। तीनों लोकों वर्तता हुआ. भी वह. घट तिर्यग् लोकमें है अतः वह इस रूपसे सत् और उर्ध्व या अधोलोकमें वर्तनकी अपेक्षाले असत् है। इसमें भी वह घड़ा जंबूद्वीपमें रहा हुआ होनेसे उस रूपमें सत् और दूसरे द्वीपोंमें वर्तमेकी अपेक्षासे असत् है। इसमें भी भरतक्षत्रमें रहाहुआ होनेसे इस रूपसे सत् और दूसरे क्षेत्रोंमें वर्तनेकी अपेक्षासे असत् है। भरतक्षेत्रमें भी पाटलीपुरमें रहा हुआ होनेसे इस रूपमें सत् और दूसरे नगरमें वन होनेकी अपेक्षासे असत् है। पाटलीपुरमे भी देवदत्तके घरमें रहा हुआ होनेसे इस रूपमें सत् और दूसरे कोने वगैरहमें रहनेकी अपेक्षासे असत् है। घरके कोनेमें भी वह जितने आकाशके भागको रोकता है उस रूपमें सत् और. वाकांके आकाशके भागको न रोकनेकी अपेक्षासे असत् है । इस तरह क्षेत्रकी अपेक्षासे दूसरा भी उचित घटा लेना चाहिये। क्षेत्रकी अपेक्षा घटके स्वपर्याय कम और परपर्याय असंख्य हैं। क्योंकि क्षेत्रके असंख्य प्रदेश हैं। अथवा मनुष्यलोकमै रहे हुए. घटके अन्यस्थानमें रहे हुए द्रव्योंकी अपेक्षासे अनन्त परपर्याय हैं। इसी प्रकार देवदत्तके घर में रहे हुये घटके विषयमें भी समझलेना चाहिए और इस तरह उसके भी परपर्याय अनन्त हैं यह भी साथही जान लेना चाहिये । अव कालकी अपेक्षा घटकी विचारणा इस प्रकार की जाती है घट अपने द्रव्यकी अपेक्षाले है, था और रहेगा। वह इस युगका होनेसे इस रूपमें सत् और अतीत एवं अनागत युगका न. होनेसे उस रूपमें असत् है। इस युगमें भी वह इसी वर्षका है अत:
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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