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________________ निर्जरा और मोक्ष १३५ आत्मासे सर्वथा भिन्न हैं? या वे गुण और आत्मा ये दोनों एक ही हैं ? यदि उन गुणोंको प्रात्मासे सर्वथा जुदा ही माना जाय तो उसका घोड़ा और उसके हाथीके समान आत्माके साथ कुछ भी सम्बन्ध न होनेसे उन्हे आत्माका गुण ही किस तरह कहा जाय ? यदि वे गुण और आत्मा दोनों सर्वथा एक ही हो तो फिर गुणोंका नाश होनेपर साथ ही प्रात्माका भी नाश होना चाहिये और जो ऐसा हो तो फिर मोक्ष ही किसका होगा? अब कदाचित् यदि आत्मा और वे गुण इन दोनोंके वीचमें किसी अपेक्षासे भेद और किसी अपेक्षाले अभेद-यो माना जाय तो फिर आपका माना हुआ एकान्तवादका सिद्धान्त निर्मूल सिद्ध होगा । आप इन गुणोंकी सन्ततिको जो नाशवन्त कहते हैं यह बात बिलकुल विरुद्ध याने असत्य है । क्योंकि जिस सन्ततिका प्रवाह परस्पर कार्यकारण भावका सम्बन्ध धारण करता है वह सर्वथा नित्य या सर्वथा अनित्य हो नहीं सकता।यदि उस प्रवाहकोसर्वथा नित्य या अनित्य ही माना जाय तो फिर वह कार्य कारणरुप नहीं हो सकता । जो वस्तु नित्यानित्य होती है उसी में क्रिया करनेकी यात संघटित हो सकती है। तथा आपने जो दीपककी सन्ततिका सर्वथा नाश होनेका उदाहरण दिया वह भी यहाँपर घट नहीं सकता। क्योंकि उसकी सन्ततिका सर्वथा नाश होता ही नहीं, किन्तु उसमें मात्र रुपान्तर होता है, याने तेजस परमाणु अपना चमकता हुआ रुप छोड़कर संयोग और सामग्रीवशात् अन्धकाररुपमें परिणत होते हैं। जैसे पदार्थमान अपने पूर्वरुपका परित्याग करता है और भविष्यके नवीन रूपको धारण करता है तथा अपने निजत्वको नहीं छोड़ता वैले ही दीपक भी इन तीनों प्रकारकी स्थिति में वर्तता है अतः उसका सर्वथा नाश किस प्रकार हो सकता है ? इस विषयमें यहाँपर बहुत कुछ कहा जा सकता है तथापि इसे विस्तारसे "अनेकान्तप्रघट्टक" में कहेंगे। तथा आप जो बुद्धि वगैरह गुणोंका सर्वथा नाश होता बतलाते हैं तो क्या वे गुण इंद्रियोसे उत्पन्न होनेवाले हैं ? या अतीन्द्रिय ? जिन्हें-इंद्रियां भी न पहुँच सके ऐसे हैं ? यदि आप इन्द्रियोंसे उत्पन्न होनेवाले बुद्धि वगैरह
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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