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________________ निर्जरा और मोक्ष. कर्मरहित आत्मा मात्र पूर्व वेगके कारण ही ऊंचे जा सकते हैं। पूर्वप्रयोग-जिस प्रकार एक दफा फिराये बाद कुम्भकारका चाक अपने आप ही फिरा करता है, एक दफा हिलाये बाद हिन्डोला अपने आप ही हिला करता है, और एक दफे फेंके वाद वाण अपने आप ही बहुत दूर तक पहुँच जाता है वैसे ही मात्माको एक दफा कर्माद्वारा फिराया हुआ होनेसे वह अव भी (अकर्मक दशामें भी) ऊंची गति कर सकता है। २ 'असंगत्वः-जैसे मट्टीसे लिप्त हुश्रा तुम्बा पानी में डूब जाता है और फिर ज्यों २ उसके ऊपरका मिट्टीका लेप धुलकर उखड़ता जाता है त्यो २ वह ऊंचे पाता है और वह मैल सर्वथा उखड़ जानेपर उस तुम्बेको हम पानीके ऊपर तैरता देखते हैं वैसे ही इस आत्माके ऊपर चिपके हुये कर्म, कषायादिका मल, सर्वथा उखड़ जानेपर आत्मा लोककी सर्वथा ऊपरी सपाटीकी तरफ गति करे यह स्वाभाविक बात है। ३ वन्धच्छेदः-जिस प्रकार एरन्डकी फली और यन्त्रके चक्रों में गंधच्छेदः-- एरण्ड-यन्त्र पेढासु बन्धच्छेदाद् यथा गतिः । कर्मवन्धनविच्छेदात् सिद्धस्याऽपि तथेष्यते ॥ ४॥ उर्ध्व गौरवः--उर्ध्वगौरवधर्माणो जीवा इति जिनोत्तमैः। .. अधोगौरवधर्माणः पुग्दला इति चोदितम् ॥ ५॥ यथाऽधस्तिर्य गूर्व च लोष्ठ-चायव-ऽमि-वीचयः । स्वभावतः प्रवर्तन्ते तयोर्ध्वगतिरात्मनः ॥ ६ ॥ अधास्तिर्यक् तथोत्रं च जीवानां कर्मजा गतिः । उर्ध्वमेव तु तद्धर्मा भवति क्षीणकर्मणाम् ।। ७ ॥ ततोऽप्यूर्ध्व गति स्तेषां कस्मानास्तीति चेन्मतिः । धर्मास्तिकायस्याऽभावात् सहि हेतुर्गतेः परम् ॥ ८॥ आठौं कर्मोका समूल नाश होनेके साथ ही लोकके अन्ततक ऊंचे चला जाता है। इसके ऊंचे जानेके जो हेतु हैं वे इस प्रकार हैं-१ पूर्वप्रयोग । २ असंगता। ३ वन्धच्छेद ४ और उर्ध्वगौरव (इन चारों हेतुओंको उदाहरण पूर्वक समझाते हैं।)
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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