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________________ जीववाद १११ क्रिया प्रत्येक द्रव्य और पर्यायमें अस्तित्व धारण करती है और इसका अस्तित्व कालके विना हो नहीं सकता अतः वर्तनेकी क्रिया की विद्यमानता ही कालकी विद्यमानताको सावित करती है। लौकिकमें भी कितनेएक कालवाचक शब्द सुप्रसिद्ध हैं जैसे कि-युगपत् अयुगपत् क्षिप्रम् चिरम् चिरेण परम् अपरम् कस्य॑ति वृत्तम् वर्तते म्हः श्वः अद्य संप्रति परुत् परारि नक्तम् दिवा ऐषम् प्रातः सायम् इत्यादि इससे भी पदार्यमें होते हुये परिणामका हेतु भूतकाल ही लोकप्रसिद्ध होनेसे उसके अस्तित्वमें किस प्रकार शंका हो सकती है? यदि कोई कालनामक तत्व ही न हो तो फिर इन लोकप्रसिद्ध शब्दोंका क्या अर्थ किया जाय? वास्तविक रीतिसे ये पूर्वोक्त काल सूचक शब्दही कालकी सिद्धिके लिये काफी हैं । तथा एक समान जातिवाले वृक्ष आदिमें जो एक ही वक्त ऋतु और समयके कारण विचित्र परिवर्तन होता हुआ मालूम देता है यह भी काल, तत्वकी नियामकताविना नहीं बन सकता, तथा घड़ा फूटगया,घड़ा फूटता है, और घड़ा फूटेगा, ये तीनों कालके जुदे जुदे तीन व्यवहार कालतत्वके सिवाय किस तरह हो सकते हैं ? वैसे ही इसकी उमर बड़ी है और उसकी उमर छोटी है यह भी कालकी विद्यमानता चिना किस तरह बन सकता है? अतः इन समस्त अनु, कूल कारणोंके लिये कालकी विद्यमानता मानना सर्वथा सुगम और शंकारहित है। पुद्गलोमेसे कितनाएक भाग प्रत्यक्षरुप है, कितनेएककी विद्यमानता अनुमानद्वारा जानी जा सकती है और उनकी विद्यमानताके विषयमें पागममें भी उल्लेख है। घट पट, चटाई, पटड़ागाड़ी और चरखा वगैरह स्थूल पुद्गलोंमें पदार्थ प्रत्यक्ष रूप हैं। जो जो पुद्गल बारीक और अति बारीक हैं उनकी सिद्धि अनुमान द्वारा हो सकती है। वारीक वारीक रज या रजःकणोंके सिवाय वडी २ वस्तुयें वन नहीं सकतीं, अतः ये बड़ी बड़ी वस्तुयें ही दों परमाणुके मिलान जैसे वारीक और परमाणु जैसे अति वारीक पदार्थोंकी विद्यमानताको सावित करनेके लिये पर्याप्त हैं। शास्त्र में
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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