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________________ जैन दर्शन शब्दको पहचाननेकी या स्पर्शको परखनेकी शक्ति भी रही हुई है। . अशोकके पेड़को पत्ते और फल तब ही आते हैं कि जब पायलवाली एवं उन्मत्ता स्त्री अपने कोमल पैरसे उसे ठुकरावे। फनसके पेड़को जब कोई युवती स्त्री आलिंगन या स्पर्श करें तव ही उसे फूल और पत्ते आते हैं । जवं सुगंधित दारुका उसपर कुल्ला किया जाय उस वक्त बकुलके पेड़को पत्ते और फूल पाते हैं। . सुगंधी और स्वच्छ पानीका सिंचन करनेसे चंपाके पेड़को पत्ते और फूल आते हैं । कटाक्ष पूर्वक सामने देखनेसे तिलके वृक्षको पत्ते और फूल आते हैं। पंचम स्वरके उद्गारसे शीरीषके . और विरहकके फूल झड़ जाते हैं । कमल वगैरह प्रातः कालमें ही खिलते हैं । घोषानकी वगैरहके फूल संध्यासमय ही खिलते हैं कुमुद वगैरह चन्द्रमाका उदय होनेपर ही खिलते हैं । एवं पास में वृष्टि पड़नेसे समीका अवक्षरण हो जाता है। लता वगैरह भीतों पर चढ़ जाती हैं । लज्जावन्ती वगैरह वनस्पतिये हाथ लगाते ही सर्वथा प्रत्यक्षतया संकोचको प्राप्त होती हैं। एवं वनस्पति मात्र अमुक अमुक ऋतुमें ही फलप्रदान करती हैं। ये पूर्वोक्त समस्त गुण ज्ञान विना सम्भावित ही नहीं हो सकते, अतः वनस्पतियोमें इन गुणोंकी विद्यमानता होनेसे उनमें ज्ञानका सद्भाव और इससे चैतन्यका अस्तित्व भी स्पष्ट ही साबित होता. है। जिस तरह हाथ,पैर या अन्य कोई अवयव कटे बाद मनुष्यका .. शरीर सूखता है वैसे ही वनस्पतिका शरीर भी पत्ते,फल, एवं फूल वगैरह कटे वाद वह कुमला जाता है यह वात प्रत्यक्ष ही देखनेमे . आती है । जिस तरह मनुष्यका शरीर माताका दूध, शाक, रोटी; ' चावल वगैरहका आहार करता है वैसे ही वनस्पतिका शरीर भी पृथ्वी और पानी वगैरहका आहार करता है । यदि वनस्पतिमें सजीवता न हो तो उसमें आहार करनेकी शक्ति किस तरह सम्भः वित हो सके ? अतः वनस्पतिको सचेतन मानने में अब किसी प्रकारका बाध नहीं आसकता। तथा जिस प्रकार मनुष्यका आयुष्य अमुक परिमित परिमाणवाला होता है उसी प्रकार वनस्पतिका आयुष्य भी अमुक अवधिवाला होता है । वनस्पतिकां .
SR No.010219
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilakvijay
PublisherTilakvijay
Publication Year1927
Total Pages251
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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