SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) भावावा. सन्ति बधहेतवो वा । अपि च कुत्रचिद योगकषाययोरेव बधहेतुत्वं, कुत्रचित् मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगानां, कुत्र. चिच्च पूर्वोक्तपचाना बंधहेतुस्वम् । एतत् सर्व कथमिति,दित्य: -- प्रास्त्रवो हि बंधहेतुर्भवति । तस्य वधपूर्वपर्यायत्वादिति . भावातवारणां मिथ्यात्वादीना वधहेतुत्ववचने कानुपपत्तिः? भावा सवा हि द्रव्यबन्धनिमित्तकारणानि, भावबंधस्य चोपादानकारणानि । यच्च बंधहेतुसंख्यानां विभिन्नत्वं तत्र तु केवलं विवक्षावैचित्र्यमेवकारणम् । बधस्य हि चतस्रो विशेषता भवति पूर्वोक्ताः प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशाख्याः । तत्र प्रकृतिप्रदेशबंधयो कारणयोगः, स्थित्यनुभागयोश्च कषाय इति संक्षेपतो द्वयमेवावश्यक बधकारणम् । विस्तरतस्तु गुणस्थानक्रमापेक्षया पूर्वोक्त चतुष्टय कपाय को ही वंध का कारण कहा है तो कहीं मिथ्याख अविरति कषाय और योग को, और कही पर पहले कहे गए पाचो को बन्ध का कारण बताया है यह सब कैसे सगत है ? समाधान.-निश्चय से पाश्रव ही वध का कारण होता है। क्योंकि वह बन्ध की पूर्व पर्याय है। मिथ्यात्व वगैरह भावाश्रवो को बन्ध का कारण बताने में कोई असंगति नही है-निश्चय से भावाश्रव द्रव्यबन्ध के निमित्त कारण होते हैं और भाववध के उपादान कारण । और जो वन्ध के कारणो की संख्या मे विभिन्नता है उसमें तो एक मात्र कारण विचित्र वर्णन शैली ही है। बंध के पहले कहे गए प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश नामक चार भेद है-उनमें प्रकृति और प्रदेश वध का कारण योग है और स्थिति अनुभाग बन्ध का कषाय । इस तरह मंक्षेप से कहने पर वन्ध के कारण दो ही उपयुक्त रहते है। पौर विस्तार की जहा विवक्षा होती है वहां गुरणस्थानो की अपेक्षा से पहले कहै हुए चार या पांच कारण कहे - - - -
SR No.010218
Book TitleJain Darshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChainsukhdas Nyayatirth, C S Mallinathananan, M C Shastri
PublisherB L Nyayatirth
Publication Year1974
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy