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________________ ८२] जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा ___ प्रत्येक वस्तु को अच्छी-बुरी, उपयोगी-अनुपयोगी, हितकर-अहितकर जो कहा जाता है वह देश, काल, स्थिति की अपेक्षा से सर है। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा-"सत्यवादी के लिए विभज्यवाद का अवलम्वन ही श्रेयस्कर है २० वे स्वयं इसी मार्ग पर चले। आत्मा, लोक आदि प्रश्नों पर मौन नहीं रहे । उन्होने इन प्रश्नो को महात्मा बुद्ध की भॉति अव्याकृत २ कहा और न संजय-वेलही पुत्त की भाँति बीच में लटकाए रखा। उन्होने - सत्य के अनेक रूपों का अनेक दृष्टियो से वर्णन किया। लोक में जितने द्रव्य हैं उतने ही थे और रहेगे २१। उनमें न अणु मात्र कम होता है और न अधिक । जन्म और मृत्यु, उत्पाद और नाश केवल अवस्था परिवर्तन है। जो स्थिति आत्मा की है, वही एक परमाणु या पौद्गलिक स्कंध या शरीर की है। आत्मा एकान्त नित्य नहीं है, शरीर एकान्त अनित्य नहीं है। प्रत्येक पदार्थ का परिवर्तन होता रहता है। पहला रूप जन्म या उत्पाद और दूसरा रूप मृत्यु या विनाश है। अव्युच्छेदनय की दृष्टि से पदार्थ सान्त है । अविच्छेदनय की दृष्टि से चेतन और अचेतन सभी वस्तुएं सदा अपने रूप में रहती हैं, अनन्त है २१ प्रवाह की अपेक्षा पदार्थ अनादि है, स्थिति (एक अवस्था) की अपेक्षा सादि २३ लोक व्यक्ति-संख्या की दृष्टि से एक है, इसलिए सान्त है। लोक की लम्बाई-चौड़ाई असंख्य-योजन कोडाकोड़ी है, इस क्षेत्रदृष्टि से सान्त है। काल और भाव की दृष्टि से वह अनन्त है । इस प्रकार एक वस्तु की अनेक स्थिति-जन्य अनेकरूपता स्वीकार कर भगवान् महावीर ने विरुद्ध प्रतीत होने वाले मतवाद एक सूत्र में पिरो दिये, तात्विक चर्चा के निर्णय का मार्ग प्रशस्त कर दिया । भगवान् से पूछा गया--- "भगवन् ! जीव परमव को जाते समय स इन्द्रिय जाता है या अन् इन्द्रिय ?" भगवान्-"स-इन्द्रिय भी जाता है और अन् इन्द्रिय भी।" गौतम-"कैसे ? भगवन् ।' भगवान्-"ज्ञान इन्द्रिय की अपेक्षा स-इन्द्रिय और पौद्गलिक इन्द्रिय की अपेक्षा अन्-इन्द्रिय ।। पौगलिक इन्द्रिया स्थूल शरीर से और ज्ञान इन्द्रियां आत्मा से. सग्क्ट होती हैं । स्थूल शरीर छुटने पर प्रौद्ध गलिक इन्द्रियां नहीं रहती, उनकी अपेक्षा
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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