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________________ जैन दर्शन में प्रमाण भीमासा ico ज्ञाता, भेय और वचन, इन तीनो की संहिता आगम का समग्र स्प है। शाता ज्ञान कराने वाला और करने वाला दोनो होते है। ज्ञेय पहले ने जान रखा है, दुमरे को जानना है। बुचन पहले के ज्ञान का प्रकाश है और दूसरे के ज्ञान का साधन । जेय अनन्तशक्तियो, गुणा, अवस्थाओं का अखण्डपिण्ड होता है। उमका स्वरूप अनेकान्तात्मक होता है। शेय आगम की रीढ होता है, फिर भी उसके आधार पर आगम के विभाग नहीं होते। ज्ञाता की दृष्टि से इसका एक भेट होता है-अर्थागम | वचन की दृष्टि से इसके तीन विभाग बनते हैं (१)स्याद्वाद-प्रमाण वाक्य । (२) मवाद-नय वाक्य । (३) दुर्णय-मिश्या श्रुत। दूसरे शब्दो मेरे। (१) अनेकान्त वचन, (२) सत्-एकान्त वचन (३) असत्-एकान्त वचन । वाक्-प्रयोग __ वर्ण से पद, पद से वाक्य और वाक्य से भाषा बनती है । भाषा अनक्षर भी होती है पर वह स्पष्ट नहीं होती। स्पष्ट भाषा अक्षरात्मक ही होती है। अक्षर तीन प्रकार के हैं - (१) संज्ञाक्षर-अक्षर-लिपि । (२) व्यञ्जनातर-अक्षर का उच्चारण । (३) लब्ध्यक्षर-अक्षर का ज्ञान-उपयोग । ये तीन प्रकार के हैं-(१) रूढ (२) यौगिक (३) मिन C जिनकी उत्पत्ति नहीं होती, वे शब्द 'रूढ़ होते है गुण, क्रिया, सम्बन्ध आदि के योग से बनने वाले शब्द 'यौगिक' कहलाते हैं जिनमे दो शब्दो का योग होने पर भी परावृत्ति नहीं हो सकती, वे 'मित्र' हैं." नाम और क्रिया के एकाश्रयी योग को वाक्य कहते हैं। शब्द या वचन ध्वनि रूप पौदगलिक परिणाम होता है। वह ज्ञापक या बताने वाला होता है। वह चेतन के वाकप्रयत्न से पैदा होता है और अवयव-संयोग से भी, सार्थक भी होता है और निरर्थक भी। अचेतन के सघात और भेद से पैदा होता है, वह निरर्थक ही होता है, अर्थ प्रेरित नही होता १२॥ - -
SR No.010217
Book TitleJain Darshan me Praman Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherMannalal Surana Memorial Trust Kolkatta
Publication Year
Total Pages243
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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